संपादक की कलम से : जंगलों की आग पर काबू कब?
Sandesh Wahak Digital Desk: गर्मी के साथ ही देश के विभिन्न राज्यों के जंगलों में आग लगने की घटनाएं घट रही हैं। हाल में उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग ने काफी बड़े क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया और उसे बुझाने के लिए सरकार की ओर से काफी प्रयास किए जा रहे हैं। यह एक बानगी भर है। यहां साल-दर-साल जंगलों में आग लगने की घटनाओं में तेजी से इजाफा हो रहा है।
सवाल यह है कि :
- जंगलों में आग लगने की घटनाओं पर अंकुश लगाने में राज्य सरकारें नाकाम क्यों हैं?
- क्या आग लगने की वजह प्राकृतिक है या जानबूझकर लगाई जा रही है?
- इसका जंगली जीवों और प्राकृतिक वातावरण पर क्या असर पड़ रहा है?
- वन विभाग आखिर कर क्या रहा है?
- शुरुआती दौर में ही जंगल में लगी आग को बुझाने का प्रयास क्यों नहीं किया जाता है?
- क्या तस्कर और शिकारी जंगल में आग लगा रहे हैं?
- आखिर इस समस्या का स्थायी समाधान क्यों नहीं खोजा जा रहा है?
- क्या जंगल में लगने वाली आग से वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का खतरा नहीं है?
देश के जंगलों को आज सबसे अधिक खतरा आग से है। गर्मी के दिन में लगी आग जंगल के सूखे होने के कारण बड़े इलाके को अपनी चपेट में ले लेती है। कई बार यह आग आस-पास के इलाकों में पहुंच जाती है। जंगल में आग लगने की दो बड़ी वजहें है। पहला प्राकृतिक रूप से आग लगती है और दूसरा इसमें शिकारी और तस्कर जानबूझकर आग लगा देते हैं। तस्कर और शिकारी पशुओं का शिकार करने के लिए वन क्षेत्र में आग लगा देते हैं ताकि घने जंगलों में छिपे वन्य जीव बाहर आ जाएं और वे उनका शिकार कर सकें।
पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को भारी नुकसान
आग के कारण वनों के पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को भारी नुकसान होता है। मसलन, उत्तराखंड के जंगलों में आग के कारण जीव-जंतुओं की करीब साढ़े चार हजार से ज्यादा प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में है। इसके अलावा इन इलाकों में उत्पन्न विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां भी नष्ट हो रही हैं। आंकड़ों के मुताबिक जंगलों में आग लगने की घटनाओं के कारण पिछले चार दशकों में देश में पेड़-पौधों की कई प्रजातियां खत्म हो चुकी हैं और पशु-पक्षियों की संख्या घटकर एक तिहाई रह गयी है। इसके अलावा यह आग जलवायु को भी प्रभावित करता है।
आग लगने से भारी मात्रा में कार्बन वातावरण में पहुंचता है। इससे तापमान में इजाफा होता है। यह स्थानीय मौसम को प्रभावित करता है। हैरानी की बात यह है कि लगातार निगरानी के बाद भी वन कर्मियों को शुरुआत में लगी आग का पता नहीं चल पाता है। बाद में हालात काबू से बाहर हो जाते हैं। जाहिर है आग के कारण हो रहे वन संपदा के नुकसान का जीवन और पर्यावरण पर घातक असर पड़ रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह जंगलों को आग से सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण विदों और विषय विशेषज्ञों की सहायता से नयी रणनीति बनाए और उसे लागू करे। साथ ही तस्करों और शिकारियों पर भी शिकंजा कसे।
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