संपादक की कलम से: चुनाव में धन बल का प्रयोग
Sandesh Wahak Digital Desk : लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से पहले निर्वाचन आयोग ने भारी मात्रा में नकदी, नशीली वस्तुएं, कीमती चीजें पकड़ीं। इनका मूल्य 4,650 करोड़ रुपये आंका गया है। बतौर चुनाव आयोग इस अवधि में हर दिन करीब 100 करोड़ रुपये की ऐसी वस्तुओं की जब्ती की गयी। साफ है कि इसका प्रयोग आम मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान के लिए लुभाने के लिए किया जाता है यानी वोट के लिए रिश्वत दी जाती। यह दीगर है कि चुनाव आयोग की सक्रियता के चलते इनकी जब्ती की गयी और कुछ सीमा तक धन बल का चुनाव में प्रयोग होने से रह गया।
सवाल यह है कि :
- क्या जनता को वोट के बदले चुनावी रिश्वत देने की प्रवृत्ति से निष्पक्ष चुनाव संभव हो सकता है?
- इसकी क्या गारंटी है कि सियासी दल इस प्रकार की कोशिश आगे नहीं करेंगे?
- धन बल के इस्तेमाल पर अंकुश लगाने के लिए क्या आयोग को कुछ और तरीकों को अपनाना होगा?
- क्या लोगों में सियासी जागरूकता के अभाव के कारण ही दल धनबल का इस्तेमाल कर वोट खरीदने की कोशिश करते हैं?
- रेवड़ी कल्चर के साथ चुनाव में धन बल का इस्तेमाल क्या देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक नहीं साबित होगा?
चुनाव में कीमती चीजें और नशीली वस्तुएं देकर लोगों से अपने पक्ष में मतदान कराने की प्रवृत्ति काफी पुरानी है और इसका इस्तेमाल आज भी जोर-शोर से किया जाता है। सियासी दल के निशाने पर गरीब और ग्रामीण क्षेत्र अधिक होते हैं। चुनाव के दौरान कई सियासी दलों के नेता लोगों को शराब, नोट, साड़ी या अन्य वस्तुएं बांटते नजर आते रहे हैं। इसके एवज में वे अपनी पार्टी या खुद के पक्ष में मतदान करने को कहते हैं। मतदाताओं को रिझाने के लिए अपनाये जा रहे ये तरीके बढ़ते जा रहे हैं।
मतदाताओं को रिझाने के लिए अपनाये जा रहे ये तरीके
इसकी पुष्टि चुनाव आयोग की जब्ती से होती है। इस बार लोकसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान से पहले जो बरामदगी हुई है। वह 2019 के पूरे चुनाव के दौरान पकड़ी गयी राशि और चीजों के दाम (3,475 करोड़ रुपये) से करीब 34 प्रतिशत अधिक है। यह किसी न किसी तरह निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करता है। हालांकि आयोग धन बल के प्रयोग पर रोक लगाने के लिए सख्ती बरत रहा है लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं कि आयोग ने इस पर पूरी तरह अंकुश लगा दिया है।
वहीं फ्री की वस्तुएं देने के वादों के साथ तमाम सियासी दल चुनाव मैदान में हैं। इसमें दो राय नहीं कि ये लोकलुभावन वादे चुनाव को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। हालांकि वादे करना सियासी दलों का अधिकार है लेकिन उन्हें जनता को यह जरूर बताना चाहिए कि वे इन वादों को कैसे पूरा करेंगे अन्यथा ये महज वादे ही रहेंगे। बावजूद इसके जिस तरह से धन बल का चुनाव में इस्तेमाल किया जा रहा है, यह बेहद गंभीर है और इस पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए आयोग को सख्त कदम उठाने होंगे। साथ ही इसके खिलाफ लोगों को जागरूक भी करना होगा।
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