संपादक की कलम से : बेलगाम मिलावटखोरी और सरकारी तंत्र
Sandesh Wahak Digital Desk : दीपोत्सव के त्योहार के साथ मिलावटखोरी का धंधा अपने चरम पर पहुंच चुका है। बाजार में न केवल खराब और सड़े हुई मिठाइयों को खपाने का काम किया जा रहा है बल्कि मिलावटी खाद्य पदार्थों को धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। यह सिलसिला हर त्योहार के पहले व बाद में लगातार बढ़ता जा रहा है। वहीं इस पर नियंत्रण लगाने के लिए स्थापित खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन विभाग सिर्फ खानापूर्ति कर रहा है।
सवाल यह है कि :
- साल-दर-साल मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री पर नियंत्रण क्यों नहीं लग पा रहा है?
- संबंधित विभाग सिर्फ त्योहारों पर ही क्यों सक्रिय होता है?
- खाद्य पदार्थों के नमूने भरने और जांच के लिए भेजने तक ही यह कार्यवाही क्यों सिमटी हुई है?
- कड़े कानूनों के बाद भी मिलावटखोरों के हौसले बुलंद क्यों हैं?
- क्या लोगों की सेहत से खिलवाड़ करने की छूट किसी को दी जा सकती है?
- आखिर इस नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए कोई ठोस रणनीति क्यों नहीं बनायी जा रही है?
सरकार ने भले ही मिलावटी खाद्य पदार्थों को बेचने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का प्रावधान किया हो लेकिन इसका असर कम से कम उत्तर प्रदेश में नहीं दिखाई दे रहा है। यहां मिलावटखोरी का धंधा खूब फल-फूल रहा है। त्योहारों के समय विभिन्न वस्तुओं की मांग बढऩे पर इसमें और भी इजाफा हो जाता है। यह स्थिति तब है जब इस पर नियंत्रण लगाने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग की स्थापना की गई है।
मिलावटखोर करोड़ों रुपये का मुनाफा कमा रहे
मिलावटखोरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए विभाग के पास पर्याप्त संसाधन है लेकिन विभाग सिर्फ त्योहारों के समय ही सक्रिय दिखता है। हैरानी की बात यह है कि वह भी खान-पान की कुछ दुकानों में पहुंचकर खाद्य पदार्थों की नमूने भर कर जांच के लिए भेजने तक सीमित रहता है। जब तक नमूने की जांच रिपोर्ट आती है। तब तक मिलावटखोर करोड़ों रुपये का मुनाफा कमा चुके होते हैं और लोगों इसका सेवन कर विभिन्न रोगों से ग्रसित हो जाते हैं।
यही नहीं रिपोर्ट के बाद मुकदमे लिखवाने और उसे अंजाम तक पहुंचाने में भी घोर लापरवाही बरती जाती है। लिहाजा मिलावटखोरों के हौसले बुलंद हैं। सच यह है कि मिलावटखोरों का पूरा नेटवर्क है और इसमें तमाम स्थानीय दुकानदार भी शामिल हैं। वे मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में मिलावटी खाद्य पदार्थ लोगों को धड़ल्ले से बेच रहे हैं।
ये मिलावटखोर अक्सर शहर के किनारे बसे गांवों में अपना अड्डा बनाते हैं और वहां निर्मित खाद्य पदार्थों को शहर और गांव के बाजार में सप्लाई करते हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बिना मिलीभगत के मिलावटखोरी का यह धंधा फल-फूल सकता है। यदि सरकार मिलावटखोरी पर नियंत्रण लगाना चाहती है तो उसे न केवल अपनी रणनीति बदलनी होगी बल्कि मिलावटखोरों पर सतत शिकंजा कसना होगा और ऐसे लोगों को कानून के मुताबिक जल्द से जल्द सलाखों के पीछे भेजना होगा।
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