संपादक की कलम से: बाघों की सुरक्षा और लापरवाह तंत्र
यूपी के दुधवा नेशनल पार्क में पचास दिनों के भीतर चार बाघों की मौत ने इस वन्य पशु की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
Sandesh Wahak Digital Desk: यूपी के दुधवा नेशनल पार्क में पचास दिनों के भीतर चार बाघों की मौत ने इस वन्य पशु की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार ने बाघों की मौतों की जांच के लिए कमेटी गठित करते हुए रिपोर्ट तलब की है। इस समिति ने दुधवा का दौरा किया और कई स्थानों की जांच-पड़ताल की है। माना जा रहा है कि कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर बाघों की सुरक्षा के लिए सरकार पुख्ता इंतजाम करेगी।
सवाल यह है कि…
- दुधवा नेशनल पार्क में बाघों की मौत को खुद वन विभाग ने गंभीरता से क्यों नहीं लिया?
- क्या सुरक्षा और देखभाल में लापरवाही बरते जाने के कारण इस वन्य पशु की स्थिति दयनीय होती जा रही है?
- क्या ये शिकारियों के निशाने पर हैं?
- क्या वन विभाग का निगरानी तंत्र लचर हो चुका है?
- क्या बाघों की मौत देश भर में चल रहे टाइगर प्रोजेक्ट को झटका नहीं है?
- क्या सरकार जिम्मेदारों की जवाबदेही तय करेगी?
- आखिर इन बाघों की मौत का जिम्मेदार कौन है?
बेहद गंभीर है चार बाघों की मौत का मामला
बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए देश भर में टाइगर प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं। इसके तहत उत्तर प्रदेश सरकार भी बेहतर पर्यावरणीय माहौल तैयार कर इनकी संख्या बढ़ाने में जुटी है। प्रदेश में टाइगर रिजर्व की संख्या बढ़ाई जा रही है। हाल में रानीपुर वन्य जीव अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया है। ऐसे में डेढ़ महीने के भीतर केवल एक टाइगर रिजर्व से चार बाघों की मौत का होना बेहद गंभीर है। वन विभाग अभी तक इनकी मौतों के कारणोंं के बारे में बहुत कुछ स्पष्ट नहीं कर सका है। यह स्थिति तब है जब वन्य पशुओं की देखभाल और निगरानी के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों की पूरी फौज तैनात की गयी है।
लापरवाही पड़ रही है भारी
बाघों की देखभाल के लिए करोड़ों रुपये का बजट हर साल आवंटित किया जाता है। सच यह है कि इस वन्य पशु की देखभाल में घोर लापरवाही बरती जा रही है। खुद वन मंत्री ने भी स्वीकार किया है कि निगरानी तंत्र में लापरवाही बरती गयी है जबकि बाघ व अन्य पशु शिकारियों के निशाने पर रहते हैं। ये इनकी खाल के लिए इनका शिकार करने की ताक में रहते हैं और इसको अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंचे दामों पर बेच देते हैं।
शिकारियों से बचाना भी है चुनौती
जाहिर है यदि वन विभाग ने दैनिक पेट्रोलिंग में लापरवाही बरती तो बाघों और अन्य वन्य पशुओं के जीवन के लिए खतरा बढ़ जाता है। सबसे पहला खतरा बाघों के आबादी में घुसने का रहता है। यदि बाघ आबादी वाले इलाके में घुस गया तो वह नरभक्षी भी बन सकता है और यह स्थिति बेहद खतरनाक हो जाती है। कई बार ऐसे बाघों को मारना पड़ता है। दूसरा, ये शिकारियों के हाथों मारे जा सकते हैं। इससे बाघों की संख्या बढ़ाने की सरकार की मंशा पर पानी फिर सकता है।
यदि सरकार बाघों का संरक्षण और उनकी संख्या में इजाफा करना चाहती है तो उसे सबसे पहले वन विभाग की कार्यप्रणाली में आमूल बदलाव करने होंगे और संबंधित अफसरों की जवाबदेही तय करनी होगी। साथ ही बाघों की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था करनी होगी।
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