संपादक की कलम से: बारिश में डूबता-उतराता सिस्टम

Sandesh Wahak Digital Desk: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सिर्फ दो घंटे की मूसलाधार बारिश (Rain) ने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी। यहां के अधिकांश इलाकों में घुटनों तक पानी भर गया। यही नहीं विधानभवन के गेट व विधान सभा के ग्राउंड फ्लोर तक पानी पहुंच गया। लिहाजा सत्र के बाद मुख्यमंत्री को दूसरे गेट से बाहर ले जाया गया।

सवाल यह है कि :

  • शहर में इस अव्यवस्था के लिए कौन जिम्मेदार है?
  • राजधानी की व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए करोड़ों का बजट कहां खर्च हो रहा है?
  • नगर निगम क्या कर रहा है?
  • आज तक शहर में जल निकासी व्यवस्था को दुरुस्त क्यों नहीं किया जा सका?
  • क्यों हर साल नाले उफनाने लगते हैं?
  • क्या ऐसे ही राज्य राजधानी क्षेत्र का सपना साकार होगा?
  • क्या लखनऊ को ऐसे ही स्मार्ट सिटी बनाया जाएगा?
  • क्या पूरा सिस्टम ही भ्रष्टाचार व लापरवाही से ग्रस्त हो चुका है?
  • सरकार जिम्मेदारों की जवाबदेही क्यों नहीं तय कर रही है?
  • क्या लापरवाह कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के बिना समस्या का समाधान हो सकता है?
  • क्या शहरों में चल रहे अनियोजित विकास के कारण स्थितियां लगातार बदतर हो रही हैं?

प्रदेश में कई सरकारें आईं और गईं लेकिन यहां के शहरों की सूरत ठीक होने की जगह बदतर होती जा रही है। भाजपा सरकार ने शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के वादे किए। इसके लिए अरबों रुपये का आवंटन भी किया गया लेकिन हालात सुधरे नहीं। मसलन, राजधानी लखनऊ आज तक स्मार्ट सिटी का तमगा नहीं ले सका। स्मार्ट सिटी छोड़िए, यहां कायदे से बुनियादी सुविधाएं तक आम आदमी को नसीब नहीं हो रही हैं। अनियोजित विकास के कारण पूरे शहर में अव्यवस्था का बोलबाला है।

नगर निगम के दावों की खुली पोल

नयी और पुरानी कॉलोनियों में आज तक जल निकासी की बेहतर व्यवस्था तक नहीं की जा सकी है। लिहाजा सामान्य बारिश (Rain) में ही गलियों और सडक़ों में घुटनों तक जलभराव हो जाता है और लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है। हर वर्ष मानसून आने के पहले नगर निगम नाला सफाई का दावा करता है लेकिन बारिश (Rain) होते ही नाले उफनाने लगते हैं जबकि सफाई के नाम पर मोटा बजट खर्च किया जाता है। पुराने शहर लखनऊ का हाल और भी बेहाल है। यहां बारिश के दौरान नालियों का गंदा पानी लोगों के घरों तक पहुंच जाता है।

यह हाल तब है जब नगर निगम के पास पर्याप्त संसाधन और कर्मचारी-अधिकारी हैं। हकीकत यह है कि शहर की अव्यवस्था लापरवाह सिस्टम की भेंट चढ़ चुका है और इस पर सीएम की सख्ती का भी कोई असर नहीं दिख रहा है। जब लखनऊ में यह हाल है तो दूसरे जिलों और शहरों के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। यदि वाकई सरकार शहरों को बेहतर बनाना चाहती है तो उसे सिस्टम को जवाबदेह बनाना होगा। साथ ही एक निगरानी तंत्र की स्थापना करनी होगी जो विभिन्न कार्यों की जमीनी हकीकत का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट दे और लापरवाह कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

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