संपादक की कलम से: विपक्षी एकता का सवाल
लोकसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकजुटता की कोशिश कर रहे हैं। वे अपने हर बयान में विपक्षी दलों को संदेश दे रहे हैं कि यदि सभी एकजुट हो जाएं तो मोदी व भाजपा को सत्ता से बेदखल किया जा सकता है।
Sandesh Wahak Digital Desk: लोकसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकजुटता की कोशिश कर रहे हैं। वे अपने हर बयान में विपक्षी दलों को संदेश दे रहे हैं कि यदि सभी एकजुट हो जाएं तो मोदी व भाजपा को सत्ता से बेदखल किया जा सकता है। इसी कड़ी में पिछले दिनों उन्होंने पहले 12 जून को पटना में विपक्षी दलों की बैठक का ऐलान किया, फिर उसे स्थगित कर दिया।
सवाल यह है कि…
- क्या नीतीश की विपक्षी एकता की हवा खुद उनके सहयोगी दल ही निकाल रहे हैं?
- कई क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों ने बैठक से दूरी क्यों बना ली?
- क्या विभिन्न दलों के आपसी हितों के टकराव के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई?
- मोदी विरोध के प्रमुख झंडाबरदार तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी इसमें व्यक्तिगत रूप से क्यों शामिल नहीं होना चाहते हैं?
- क्या दिल्ली के अध्यादेश पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच चल रही रस्साकशी विपक्षी एकता की कोशिश को बड़ा झटका दे रही है?
विपक्षी एकता को एकजुट करने में लगे हैं नितीश कुमार
भाजपा सरकार को केंद्र से उखाड़ फेंकने के लिए नीतीश कुमार ने ही सबसे पहले विपक्षी एकता का स्वर तेज किया था। इसके लिए उन्होंने ताबड़तोड़़ कोशिशें भी कीं। वे न केवल सहयोगी कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बल्कि तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी, तेलंगाना के सीएम केसीआर, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की थी।
बंगाल में तो ममता और नीतीश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विपक्षी दलों को एकजुट होने का आह्वान किया था। फिर ऐसा क्या हुआ कि पटना में होने वाली बैठक से कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के प्रमुखों ने दूरी बना ली।
केसीआर ने बयान से चौंकाया
सबसे चौंकाने वाला बयान तेलंगाना के सीएम केसीआर ने दिया। उन्होंने मोदी का नाम लिए बिना कहा कि वे किसी एक आदमी का विरोध करने के लिए विपक्षी एकजुटता के हामी नहीं है। दरअसल, कर्नाटक में कांग्रेस की विजय ने केसीआर की चिंता बढ़ा दी है। उन्हें लग रहा है कि तेलंगाना विधानसभा चुनाव में अब उनका सामना भाजपा और कांग्रेस दोनों से होगा। ऐसे में यदि वे विधानसभा चुनाव पर फोकस नहीं करेंगे तो उनके लिए मुश्किल पैदा हो जाएगी।
राहुल गाँधी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर पा रही हैं ममता बनर्जी
वहीं ममता अभी भी राष्ट्रीय स्तर पर राहुल के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। केंद्र सरकार के दिल्ली अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस ने केजरीवाल को समर्थन देने का अभी ऐलान नहीं किया है। ऐसे में बैठक में केजरीवाल और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व एक दूसरे का सामना नहीं करना चाहते हैं। इन सबके बीच कर्नाटक जीत ने कांग्रेस के हौसले को बढ़ा दिया है और वह कभी नहीं चाहेगी कि वह क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बनकर रहे।
जाहिर है, नीतीश कुमार की राज्यों में परस्पर विरोधी दलों को एकजुट करने की कोशिश परवान नहीं चढ़ पा रही है। यह भविष्य ही बताएगा कि विपक्षी एकजुटता की कोशिश सफल होगी या नहीं।
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