संपादक की कलम से: जल संरक्षण की अनिवार्यता
तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने देश में पानी की मांग भी बढ़ा दी है। अधिकांश आबादी पेय जल के लिए भूगर्भ जल पर निर्भर है। इसके अलावा विकास से जुड़े निर्माण कार्यों आदि में भी इसका जमकर प्रयोग किया जा रहा है।
Sandesh Wahak Digital Desk: देश में विकास की बढ़ती रफ्तार के साथ प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन जारी है। इस प्रवृत्ति ने पूरे ईको सिस्टम को तबाही की कगार पर पहुंचा दिया है। अंधाधुंध जलदोहन के चलते भूगर्भ जल का स्तर घटता जा रहा है। इसके चलते देश के तमाम शहरों में डार्क जोन का क्षेत्र बढ़ रहा है। गर्मी के दिनों में इन इलाकों में पानी की किल्लत आम हो चुकी है। यह सब तब हो रहा है जब सरकार और सामाजिक संस्थाएं जलसंरक्षण को बढ़ावा देने की न केवल तमाम कोशिशें कर रही हैं बल्कि लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रही हैं।
सवाल यह है कि…
- ईको सिस्टम को कौन बर्बाद कर रहा है?
- क्या अनियोजित विकास के कारण भूगर्भ जल का खजाना खाली हो रहा है?
- जलसंरक्षण के लिए सरकार की कोशिशें जमीन पर उतरती क्यों नहीं दिख रही हैं?
- किसके इशारे पर जलस्रोतों को पाटकर कंक्रीट की इमारतें खड़ी की जा रही हैं?
- वर्षा जल के संरक्षण लिए वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को आज तक जमीन पर क्यों नहीं उतारा जा सका है?
- क्या आम आदमी की भागीदारी के बिना भूगर्भ जल के खजाने को फिर से भरा जा सकता है?
बढती जनसँख्या से जल की समस्या बढ़ी
तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने देश में पानी की मांग भी बढ़ा दी है। अधिकांश आबादी पेय जल (Water) के लिए भूगर्भ जल पर निर्भर है। इसके अलावा विकास से जुड़े निर्माण कार्यों आदि में भी इसका जमकर प्रयोग किया जा रहा है। दूसरी ओर भूगर्भ के संरक्षण की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं की गई है। अलबत्ता जलस्रोतों मसलन तालाबों और पोखरों आदि को पाटकर उस पर इमारतें खड़ी कर दी गई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि हर साल भूगर्भ जल स्रोत एक फीट नीचे जा रहा है।
उत्तर प्रदेश की भी हालात खस्ता
देश में करीब 850 ब्लॉक डार्क जोन में आ चुके हैं और यह संख्या बढ़ती जा रही है। उत्तर प्रदेश की हालत भी बेहद खराब है। पश्चिमी यूपी के गाजियाबाद, बागपत, गौतमबुद्धनगर और मेरठ में भूगर्भ जल तेजी से नीचे जा रहा है। यहां के कई इलाके डार्क जोन में तब्दील हो चुके है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ का भी यही हाल है।
जल्द ही सूख जायेंगे 60 फीसदी जल स्रोत
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भूगर्भ जल दोहन के कारण बहुत जल्द देश के 60 फीसदी जलस्रोत सूख जाएंगे। इसका असर न केवल खेती पर पड़ेगा बल्कि पीने के लिए पानी की किल्लत हो जाएगी। नीति आयोग भी जल संकट को लेकर अपनी चिंता जता चुका है। जल स्रोतों के कम होने से वर्षा जल का संचय नहीं हो रहा है। लिहाजा जमीन के भीतर पर्याप्त मात्रा में जल नहीं पहुंच रहा है। यह स्थिति तब है जब सरकार जल संरक्षण पर जोर दे रही है और इसके लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को लागू किया है लेकिन यह आज भी जमीन पर कहीं नहीं दिख रहा है। अधिकांश सरकारी इमारतों में वर्षा जल के संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
साफ है यदि आने वाली पीढिय़ों को पेयजल की किल्लत से बचाना है तो सरकार और आम आदमी को मिलकर भूगर्भ जल स्रोत के खजाने को भरना होगा और इसके लिए ठोस रणनीति बनानी होगी।
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