संपादक की कलम से : महिला आरक्षण बिल के किंतु-परंतु
Sandesh Wahak Digital Desk : केंद्रीय कैबिनेट से महिला आरक्षण बिल को मंजूरी मिलने के बाद उसे नए संसद भवन में शुरू हुए सत्र के पहले दिन ही लोकसभा पटल पर रखा गया। देश के कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने इसे पेश किया और सत्ता पक्ष ने इसके सर्वसम्मति से पारित कराने की अपील की। यदि यह बिल कानून की शक्ल ले लेता है तो इससे कई समीकरण बदलेंगे क्योंकि बिल में 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
बावजूद इसके सबसे बड़ा सवाल यह है कि :-
- क्या इससे सभी वर्ग की महिलाओं का लोकसभा और राज्यविधानसभाओं में जाने का रास्ता साफ हो जाएगा?
- क्या यह आभिजात्य वर्ग या सियासी परिवारवाद की भेंट नहीं चढ़ेगा?
- क्या सामान्य पृष्ठïभूमि की महिलाओं को सियासी पार्टियां टिकट देंगी?
- क्या इसकी स्थिति प्रधानी के चुनाव जैसी नहीं हो जाएगी जहां आज भी प्रभावशाली लोग महिला आरक्षित सीटों पर अपनी पत्नियों या परिवार की अन्य महिलाओं को चुनाव में उतार देते हैं?
- क्या यह सही अर्थों में महिला सशक्तिकरण की राह प्रशस्त कर पाएगा?
ढाई दशक से अधिक समय से महिला आरक्षण बिल संसद में पेश और निलंबित होने की राह से हटता दिख रहा है। देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस व भाजपा के अलावा कुछ क्षेत्रीय दल भी इस बिल के पक्ष में दिख रहे हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि सब-कुछ ठीक रहा तो यह विधेयक अधिनियम बन जाएगा और महिलाओं को लोकसभा और राज्यविधानसभाओं में आरक्षण मिल सकेगा।
क्या इससे आधी आबादी को लाभ मिल सकेगा?
इसके साथ लोकसभा की कुल 543 में से करीब 180 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। फिलहाल लोकसभा में 78 और राज्यसभा में 24 महिला सांसद हैं। इसके अलावा यह सवाल अपनी जगह मौजूद है कि क्या इससे आधी आबादी को लाभ मिल सकेगा? फिलहाल आंकड़े इसके विरोध में गवाही दे रहे हैं। लोकसभा में 32 महिला सांसद या तो नेताओं की पत्नियां हैं या पुत्रियां। इसमें हर दल के नेता शामिल हैं।
इसके अलावा फिल्म जगत की जानी-मानी अभिनेत्रियां सांसद हैं। साफ है कि ये महिलाएं समाज के खास और आभिजात्य तबके से आई हैं। हाल यह है कि जिन राज्यों में कांग्रेस और भाजपा की सत्ता है वहां एक भी महिला मुख्यमंत्री नहीं है। साफ है महिला आरक्षण बिल पास हो जाने के बाद सियासी दलों के नेता अधिकांशत: इसी लीक पर चलेंगे। इसके अलावा पार्टियां भी सामान्य पृष्ठभूमि से आई महिलाओं को कदाचित ही स्थान दें क्योंकि हर दल जिताऊ प्रत्याशी की खोज में लगा रहता है।
हालांकि अभी से महिला आरक्षण बिल के प्रभाव की पूर्ण समीक्षा करना समीचीन नहीं है बावजूद इसके ये सवाल समाज में अभी से उठने लगे हैं। हालांकि उम्मीद यही है कि बिल पास हो जाने के बाद सियासी दल अपनी रणनीति में कुछ परिवर्तन जरूर करेंगे और सियासत के क्षेत्र में आम महिलाओं को आगे आने का मौका मिलेगा। यदि ऐसा हुआ तो सही अर्थों में यह बिल सार्थक हो जाएगा।
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