संपादक की कलम से: शीर्ष अदालत की चिंता
मनी लॉन्ड्रिंग (धनशोधन) मामले में फंसे लोगों द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचने पर शीर्ष अदालत न केवल चिंतित है बल्कि उसने इसकी निंदा भी की है।
Sandesh Wahak Digital Desk: मनी लॉन्ड्रिंग मामले में फंसे लोगों द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचने पर शीर्ष अदालत न केवल चिंतित है बल्कि उसने इसकी निंदा भी की है। अदालत ने साफ कर दिया है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में ईडी को धनशोधन अधिनियम के तहत आरोपी की गिरफ्तारी, संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती के अधिकारों को बरकरार रखा है तो फिर अनुच्छेद 32 की आड़ में समन का विरोध करने के लिए सीधे अदालत का रुख करना बेहद निंदनीय है। यह अन्य उपलब्ध कानूनी उपायों को दरकिनार करने और सर्वोच्च न्यायालय को वैकल्पिक मंच बनाने के समान है।
सवाल यह है कि…
- सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के क्या मायने हैं?
- क्या केवल चिंता और निंदा करने भर से आरोपी इसका लाभ उठाने की भविष्य में कोशिश नहीं करेंगे?
- क्या इस तरह की याचिकाएं ईडी के हाथ बांधने या मामले को लंबा खींचने का प्रयास नहीं है?
- क्या सुप्रीम कोर्ट को ऐसे याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई और इस पर स्पष्ट गाइडलाइन नहीं जारी करनी चाहिए?
- क्या भ्रष्टाचारियों को संविधान की धाराओं को अपने हित में दुरुपयोग करने की छूट दी जा सकती है?
शीर्ष अदालत की बढ़ रही है चिंता
भ्रष्टाचार के खिलाफ ईडी की लगातार चल रही कार्रवाई से भ्रष्टाचारियों की हालत पतली हो रही है। केंद्रीय जांच एजेंसी पर लगाम लगाने के लिए विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचे थे और एजेंसी के अधिकारों को कम करने की मांग की थी लेकिन कोर्ट ने विजय मदनलाल के फैसले में ईडी के अधिकारों को बरकरार रखा। इसके बाद धनशोधन अधिनियम में फंसे आरोपियों ने इसकी काट निकाली। वे अनुच्छेद 32 का सहारा लेकर निचली अदालत और हाईकोर्ट को दरकिनार कर समन को चुनौती देने या जमानत पाने के लिए सीधे शीर्ष न्यायालय पहुंचने लगे हैं।
अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहें है भ्रष्टाचारी
दरअसल, अनुच्छेद 32 में यह प्रावधान है कि यदि किसी भारतीय नागरिक को लगता है कि उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है तो वे सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं। भ्रष्टाचार के आरोपियों की इन चालाकियों को शीर्ष अदालत के विद्वान न्यायाधीश समझ रहे हैं, इसलिए उन्होंने ताजा टिप्पणी की। हकीकत यह है कि ये भ्रष्टाचारी संविधान की धाराओं का प्रयोग अपने हित में करने से बाज नहीं आ रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की चिंता जायज है कि यदि भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए आरोपियों के हर मामले की सुनवाई वह करने लगेगा तो इससे धनशोधन अधिनियम का असर कम हो जाएगा।
अनुच्छेद 32 को लेकर जारी करनी होगी स्पष्ट गाइडलाइन
वहीं यह निचली अदालतों और हाईकोर्ट की गरिमा को भी कम करेगा लेकिन सुप्रीम कोर्ट के चिंता जताने भर से ये आरोपी बाज नहीं आएंगे। शीर्ष अदालत यदि इसके बढ़ते चलन पर रोक लगाना चाहती है तो उसे इसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे। ऐसी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ उसे न केवल दंडात्मक कार्रवाई करनी होगी बल्कि अनुच्छेद 32 को लेकर स्पष्ट गाइडलाइन भी जारी करनी होगी।