संपादक की कलम से: प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
Sandesh Wahak Digital Desk : देश की राजधानी दिल्ली के गैस चेंबर में तब्दील होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार को जमकर फटकार लगायी। यही नहीं कोर्ट ने कहा कि प्रदूषण को देखते हुए वाहनों का ऑड-इवन फार्मूला केवल दिखावे में लिया उठाया जा रहा कदम है। इसके प्रभावी होने के कोई पुख्ता सबूत नहीं है। कोर्ट ने साफ कर दिया कि वह प्रदूषण के कारण लोगों को मरने नहीं दे सकता है और राज्य सरकारों को इसे हर हाल में रोकना होगा।
सवाल यह है कि :
- प्रदूषण पर कई बार फटकार खाने के बाद भी दिल्ली और पंजाब सरकार कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाती है?
- पिछले दस सालों से दिल्ली की वायु गुणवत्ता लगातार खराब क्यों होती जा रही है?
- क्या दिल्ली सरकार केवल दिखावे की कार्रवाई कर वाहवाही लूटना चाहती है?
- पराली को जलाने से रोकने में राज्य सरकारें क्यों सफल नहीं हो सकी हैं?
- क्या लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने की छूट किसी को दी जा सकती है?
- क्या सियासी खींचतान और एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़कर जानलेवा प्रदूषण से कोई भी सरकार अपना पल्ला झाड़ सकती है?
- क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश का असर राज्य सरकारों पर पड़ेगा?
हर साल सर्दियों की दस्तक के साथ दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण का खतरा बढ़ जाता है। दिल्ली सरकार के तमाम दावों के साथ इसमें हर साल इजाफा हो रहा है। इस बार दिल्ली ने वायु प्रदूषण के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। यहां कई जगहों पर एक्यूआई 700 के ऊपर पहुंच गया जबकि सौ के ऊपर एक्यूआई होने पर भी लोगों की सेहत पर खतरा मंडराने लगता है। यहां प्रदूषण को देखते हुए स्कूल बंद कर दिए गए हैं। हालत यह है कि यहां बच्चे और बुजुर्ग सांस नहीं ले पा रहे हैं।
प्रदूषण के लिए केवल पराली जिम्मेदार नहीं
हालांकि दिल्ली की आप सरकार ने प्रदूषण कम करने के लिए कई कवायदों का दावा किया था। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पराली जलाई जा रही है। सबसे अधिक पराली पंजाब के किसान जला रहे हैं। इसका सीधा असर दिल्ली के प्रदूषण स्तर पर पड़ रहा है। हालांकि प्रदूषण के लिए केवल पराली जिम्मेदार नहीं है। दिल्ली में चलने वाले डग्गामार वाहन, जहरीला धुआं उगलते कल-कारखाने, खुले में कूड़ा जलाने और निर्माण सामग्री रखने के कारण प्रदूषण अधिक फैल रहा है।
इन पर नियंत्रण लगाने में दिल्ली की आप सरकार नियंत्रण लगाने में नाकाम रही है। सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख सरकारों की लापरवाही को उजागर करता है। सच यह है कि बिना सुप्रीम कोर्ट की फटकार खाए बिना चुनी गई सरकारें आम आदमी की सेहत से जुड़ी समस्या पर कान क्यों नहीं देती है।
यह स्थिति लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह आम आदमी के जीवन के लिए खतरा बन चुके प्रदूषण से निपटने के लिए ठोस रणनीति बनाए और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करे अन्यथा आने वाले दिनों में स्थितियां बेहद खतरनाक हो जाएगी।
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