संपादक की कलम से: बचाव अभियान की सफलता और सीख

Sandesh Wahak Digital Desk : उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग का हिस्सा ढह जाने से 41 मजदूर उसमें फंस गए। इन्हें सकुशल बाहर निकालने को चलाया गया बचाव अभियान तमाम बाधाओं के बावजूद पूरी तरह सफल रहा और सभी को सुरक्षित निकाल लिया गया। देश की 21 एजेंसियों ने लगातार 408 घंटे तक इस अभियान को चलाया। यह दुनिया का अनोखा अभियान रहा। हालांकि यह हादसा अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि :-

  • क्या हिमालयन रेंज में सुरंगों का जाल बिछाना खतरनाक है?
  • क्या देश की तमाम सुरंगों का सुरक्षा ऑडिट किया जाना चाहिए?
  • क्या सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए बिना लोगों की जान को जोखिम में डालना चाहिए?
  • क्या सुरंगों के निर्माण में भूगर्भिक संरचना को नजरअंदाज किया जा रहा है?
  • क्या विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ करने की कीमत नहीं चुकानी होगी?
  • बचाव अभियान की सफलता के क्या मायने है?
  • क्या सरकारें इस हादसे से सीख लेंगी?

उत्तराखंड में हुआ सुरंग हादसा और श्रमिकों को टनल से बाहर निकालने के लिए चलाए गए रेस्क्यू ऑपरेशन की सफलता के गहरे निहितार्थ हैं। इस सफलता ने यह बता दिया है कि यदि केंद्र और राज्य मिलकर किसी लक्ष्य को पाना चाहे तो उसे हासिल किया जा सकता है। यह एजेंसियों के बीच तालमेल के अलावा उच्च गुणवत्तायुक्त तकनीक और परंपरागत साधनों की अहमियत को साबित करता है। उच्च तकनीक और मशीन ने जहां सुरंग में फंसे मजदूरों तक पहुंचने के लिए आधार तैयार किया, वहीं जहां मशीनें काम नहीं कर सकीं वहां मानवशक्ति ने अपना कमाल दिखाया और हाथों से खोदाई कर सफलता प्राप्त कर ली।

इस हादसे से सबक सीखने की जरूरत

इसने देश में परंपरागत साधनों को हेय दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति को भी बड़ा झटका दिया है। ये सफलता बताती है कि लक्ष्य को पाने के लिए तालमेल और उपलब्ध संसाधनों का उचित प्रयोग कितना सार्थक हो सकता है। वहीं इस हादसे से सबक सीखने की भी जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकारों को विकास की अंधी दौड़ में शामिल होने से बचना चाहिए। सड़क हो या सुरंग या कोई अन्य निर्माण कार्य, इसे वहां की भूगर्भिक संरचना की जांच-परख के बाद ही किया जाना चाहिए।

वहीं श्रमिकों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करने के बाद ही निर्माण कार्य शुरू किए जाने चाहिए। सच यह है कि हादसा बहुत कुछ मानवीय कारणों से हुआ। वर्षों से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में अंधाधुंध विकास कार्य किए जा रहे हैं। निर्माण कार्यों में यहां की भूगर्भिक संरचना का ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि विशेषज्ञों की चेतावनी और पहाड़ों के दरकने के बाद भी सरकारें सुन नहीं रही है। साफ है सरकार को इन राज्यों में अपनी विकास नीति की फिर से समीक्षा करनी होगी अन्यथा पहाड़ और यहां की प्रकृति नष्टï हो जाएगी और ऐसे हादसों की श्रृंखला बढ़ेगी।

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