संपादक की कलम से: सांसों का संकट और लापरवाह तंत्र
Sandesh Wahak Digital Desk : देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों में सर्दी की आहट के साथ वायु प्रदूषण फिर बढ़ने लगा है। इस मामले में खुद पीएम मोदी के प्रधान सचिव ने हाई लेवल टास्क फोर्स की मीटिंग की और स्थितियों को नियंत्रित करने के लिए जरूरी व्यवस्था बनाने को राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिवों के साथ मंथन किया।
सवाल यह है कि :-
- हर साल सर्दियों में वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर क्यों होती जा रही है?
- इसके मूल कारणों को नियंत्रित क्यों नहीं किया जा रहा है?
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आखिर क्या कर रहा है?
- सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को दरकिनार क्यों किया जा रहा है?
- क्या आम आदमी के सेहत की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की नहीं है?
- क्यों वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ठोस कार्ययोजना नहीं बनायी जा रही है?
- क्या केवल पलारी और पटाखे ही सबसे अधिक प्रदूषण बढ़ाते हैं?
दिल्ली समेत आस-पास के राज्यों में हर साल सर्दियों में प्रदूषण गहरा जाता है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार के तमाम दावों के बावजूद हालात को नियंत्रित नहीं किया जा सका है। यह स्थिति तब है जब सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण को नियंत्रित करने और इसके कारकों को दूर करने के लिए कई आदेश दिए हैं। दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों में भी प्रदूषण बढ़ रहा है। दरअसल, प्रदूषण के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं।
कल-कारखानों और डग्गमार वाहनों से निकलने वाला घातक धुंआ
इसमें खेतों में पलारी जलाने से लेकर कल-कारखानों और डग्गमार वाहनों से निकलने वाला घातक धुंआ जिम्मेदार है। सर्दियों में यह धुंआ फॉग के साथ मिलकर स्मॉग बन जाता है। इसके कारण प्रदूषण का लेवल काफी बढ़ जाता है। इसका सीधा असर लोगों की सेहत पर पड़ता है। स्वस्थ आदमी को भी सांस लेने में दिक्कत होती है। इसका सबसे अधिक प्रभाव बुजुर्ग और बच्चों पर पड़ता है। वे एलर्जी और अस्थमा जैसे रोगों के शिकार हो रहे हैं।
हैरानी की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विस्तृत गाइड लाइन जारी की है लेकिन कारकों को नियंत्रित करने की आज तक कोई कोशिश नहीं की गई। समस्या बढऩे पर सरकारें सियासी दांव-पेच चलती नजर आती है और प्रदूषण के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार बताने लगती है। सच यह है कि खुले में फैली निर्माण सामग्री, सडक़ों में उड़ती धूल, डग्गामार वाहनों और कारखानों से निकलता धुंआ पलारी जलाने से कहीं ज्यादा वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है लेकिन इस पर सरकारें कोई काम नहीं करती नजर आती है।
यही नहीं इस मामले में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी सक्रिय नहीं दिखता है। लापरवाह सरकारी तंत्र के कारण ही हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। साफ है यदि राज्य सरकारें वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना चाहती है तो उन्हें इसके कारकों को नियंत्रित करना होगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन सुनिश्चित करना होगा अन्यथा स्थिति लगातार बदतर होती जाएगी।
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