संपादक की कलम से : स्वच्छता अभियान की हकीकत
Sandesh Wahak Digital Desk : एक बार फिर देश और प्रदेश में स्वच्छता पखवाड़े का आयोजन जोर-शोर से शुरू किया गया है। सफाई को लेकर लोगों को जागरूक करने की कोशिश कई वर्षों से की जा रही है लेकिन इसका असर शहर को चमकाने की जिम्मेदारी निभा रहे नगर निगमों और नगरपालिकाओं पर पड़ती नहीं दिख रही है। मसलन यूपी में अधिकांश शहरों की सड़कों और गलियों में गंदगी का साम्राज्य व्याप्त है।
सवाल यह है कि :-
- क्या ऐसी स्थिति में स्वच्छता अभियान का कोई असर पड़ेगा?
- नगर निगम और नगरपालिकाएं अपने कर्तव्यों का निर्वहन क्यों नहीं कर रही हैं?
- कूड़े के उठान से लेकर इसके निस्तारण तक की सुचारू व्यवस्था आज तक क्यों नहीं की जा सकी है?
- शहर को स्वच्छ रखने के लिए जारी होने वाला भारी-भरकम बजट कहां खर्च किया जा रहा है?
- नगर निगमों और नगर पालिकाओं का भारी-भरकम अमला क्या कर रहा है?
- शहर में व्याप्त गंदगी के लिए कौन जिम्मेदार है?
- क्या केवल नागरिकों को स्वच्छता बोध करा देने भर से स्थितियां बदल जाएंगी?
- आखिर घर का कूड़ा नागरिक कहां निस्तारित करेंगे?
करीब एक दशक से केंद्र सरकार स्वच्छता को लेकर जागरूकता अभियान चला रही है लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। केवल उत्तर प्रदेश की ही बात करें तो यहां के शहरों की हालत बेहद खराब है। मसलन, राजधानी लखनऊ में कुछ पॉश कालोनियों को छोड़ दिया जाए तो सफाई कर्मचारी कहीं नहीं दिखते हैं। सड़कों पर कूड़े के अंबार लगे रहते हैं। गलियों की हालत बद से बदतर है। सड़कों पर रखे कूड़ेदान भरे पड़े रहते हैं लेकिन यहां से कूड़ा उठान नहीं होता है। ये कूड़ा शहर की सड़कों पर बिखरा रहता है। घर-घर कूड़ा उठान व इसके निस्तारण की व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है।
लखनऊ नगर निगम के पास पर्याप्त मानव संसाधन
हालत यह है कि कॉलोनियों में निजी कर्मचारी कूड़ा उठान करते हैं और ये भी कॉलोनी का कूड़ा कहीं भी निस्तारित कर देते हैं। यह स्थिति तब है जब लखनऊ नगर निगम के पास पर्याप्त मानव संसाधन है। बजट की पर्याप्त व्यवस्था है। पुराने लखनऊ की हालत और भी खराब है। इस अव्यवस्था के कारण लोग खाली प्लाटों को डंपिंग ग्राउंड बना चुके हैं और गली-मोहल्ले का सारा कूड़ा इन्हीं प्लाटों में डंप कर दिया जाता है। इसके कारण संक्रामक रोगों का खतरा बना रहता है।
जब प्रदेश की राजधानी लखनऊ का यह हाल है तो प्रदेश के अन्य शहरों के बारे में आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है। साफ है, स्वच्छता अभियान महज वार्षिक शो बनकर रह गया है। सच यह है कि न सरकार, न जनप्रतिनिधि और न ही संबंधित सरकारी विभाग इसे लेकर गंभीर हैं। यदि सरकार वाकई शहरों को स्वच्छ रखना चाहती है तो उसे संबंधित विभागों को जवाबदेह बनाना होगा साथ ही लापरवाह कर्मियों को चिन्हित कर कार्रवाई करनी होगी अन्यथा स्वच्छ भारत का सपना बस सपना ही रह जाएगा और यह अभियान वार्षिक शो ही साबित होगा।
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