संपादक की कलम से: चिकित्सा सेवाओं पर सवाल

Sandesh Wahak Digital Desk : उत्तर प्रदेश विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष ने कई जनहित के मुद्दे उठाए और सरकार से सवाल पूछा लेकिन सबसे बड़ा सवाल यूपी की चिकित्सा सेवाओं को लेकर उठा। विपक्ष ने कहा, प्रदेश में सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सेवाएं दुरुस्त नहीं है, जिसके कारण गरीब आदमी निजी अस्पताल में इलाज को मजबूर है। विपक्ष का यह सवाल भले ही सरकार को चुभा हो और उसने तमाम दावे किए हो लेकिन चिकित्सा के क्षेत्र में यहां की जमीनी हकीकत अच्छी नहीं है।

सवाल यह है कि :- 

  • विपक्ष के सवालों का आंकड़ों से इतर सरकार के पास क्या जवाब है?
  • क्या सरकारी दावे के मुताबिक स्वास्थ्य सेवाओं में गुणात्मक सुधार हुआ है?
  • क्या केवल राजधानी की चिकित्सा व्यवस्था को पूरे प्रदेश का प्रतीक माना जा सकता है?
  • यदि हर जिले के सरकारी अस्पतालों की स्थिति बेहतर है तो आसपास के जिलों से लोग इलाज के लिए लखनऊ क्यों पहुंच रहे हैं?
  • हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज के दावे सतह पर क्यों नहीं दिख रहे हैं?
  • मरीजों को समय पर दवाएं और इलाज क्यों नहीं मिल पा रहा है?
  • दवाएं रखे-रखे एक्सपॉयर क्यों हो जा रही है?
  • कोरोना के बाद भी सरकार ने कोई सबक क्यों नहीं सीखा?

सत्र के दौरान और बाद में भी सरकार विपक्ष के जनहित के सवालों का जवाब देने से बच नहीं सकती है। यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता कि विपक्षी दल जब शासन में था तो चिकित्सा व्यवस्था बदतर थी और इलाज के अभाव में इंसेफेलाइटिस से सैकड़ों बच्चे हर साल मौत के मुंह में समा जाते थे। इसमें दो राय नहीं कि प्रदेश की वर्तमान सरकार ने इंसेफेलाइटिस की रोकथाम को बेहतर काम किया है और बच्चों की मौत में भारी कमी आई है बावजूद इसके चिकित्सा व्यवस्था में अपेक्षित सुधार अभी तक नहीं हो सका है।

लखनऊ के नामचीन अस्पतालों तक में विशेषज्ञ चिकित्सकों का टोटा

अधिकांश सरकारी अस्पताल दवा, अत्याधुनिक जांच उपकरणों, मानव संसाधनों और चिकित्सकों की कमी से जूझ रहे हैं। राजधानी लखनऊ के नामचीन अस्पतालों तक में विशेषज्ञ चिकित्सकों का टोटा है। अव्यवस्था का आलम यह है कि जनता के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाएं स्टोर रूम में रखे-रखे एक्सपायर हो जाती हैं। छोटी से छोटी जांच कराने के लिए दस से पंद्रह दिनों बाद मरीज की बारी आती है। प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र टीकाकरण केंद्र बनकर रह गए हैं।

इसका असर यह है कि ग्रामीण इलाके के लोग जिला अस्पतालों का रुख करते हैं लिहाजा यहां मरीजों का बोझ कई गुना बढ़ जाता है। वहीं गंभीर रोगियों के इलाज के लिए तमाम जिलों में पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। जाहिर है विपक्ष के इस सवाल पर सरकार को काम करने की जरूरत है क्योंकि यह विशुद्ध रूप से जनहित का मामला है। लोगों को गुणवत्तायुक्त चिकित्सा उपलब्ध कराने की सरकार की मंशा तभी सफल होगी जब व्यवस्था में आमूल-चूल सुधार लाया जा सकेगा अन्यथा स्थितियां दिनोंदिन विकट होती जाएंगी।

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