सम्पादक की कलम से : जनहित और सुप्रीम कोर्ट
Sandesh Wahak Digital Desk : सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की केजरीवाल सरकार को जनहित परियोजना रीजनल रैपिड टांजिट सिस्टम (आरआरटीएस)को शुरू करने के लिए धन नहीं मुहैया कराने पर जमकर फटकार लगायी। यही नहीं जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस सुधांशु धुलिया की बेंच ने न केवल सरकार से विज्ञापनों पर किए गए खर्च के बारे में पूछा बल्कि दो सप्ताह के भीतर पिछले तीन वर्षों के खर्च का ब्यौरा भी तलब कर लिया है।
सवाल यह है कि :-
- जनहित के लिए काम करने का दावा करने वाली केजरीवाल सरकार इस महत्वपूर्ण परियोजना को फंड क्यों नहीं मुहैया करा रही है?
- क्या वाकई में दिल्ली सरकार का खजाना खाली हो चुका है?
- क्या अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए आम आदमी पार्टी की सरकार जनता की गाढ़ी कमाई विज्ञापनों पर खर्च कर रही है?
- क्या मुफ्त में बिजली-पानी देने का असर खजाने पर पड़ रहा है?
- क्या केंद्र और राज्य के बीच चल रहे टकराव के कारण केजरीवाल सरकार जनहित के कार्यों में सहयोग नहीं करना चाहती है?
केजरीवाल सरकार से विज्ञापनों पर खर्च का ब्यौरा मांगा
कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए सरकारों द्वारा विज्ञापनों का प्रकाशन कराया जाता है। इसके जरिए सरकारें लोगों को विभिन्न रोगों, यातायात नियमों आदि के प्रति जागरूक करती हैं। इसका फंड खजाने से मुहैया कराया जाता है। यह जनहित में आता है लेकिन जब जनता के टैक्स के पैसे का प्रयोग सत्ताधारी दल अपनी पार्टी के प्रचार-प्रसार में लगाते हैं तो सवालिया निशान लगते हैं। ऐसा नहीं है कि केवल आम आदमी पार्टी अपने सियासी लाभ के लिए सरकारी खजाने का प्रयोग कर रही है, सत्ता में बैठे अन्य दल भी ऐसा करते रहे हैं लेकिन यदि सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार से विज्ञापनों पर खर्च का ब्यौरा तलब किया है तो यह गंभीर मामला है।
अन्य क्षेत्रीय दलों की सरकारों की तुलना में केजरीवाल सरकार राज्य से बाहर भी अपने दल का प्रचार-प्रसार कर रही है। दिल्ली की जनता का पैसा दल के प्रचार के लिए अन्य राज्यों में खर्च करना और दूसरी ओर आरआरटीएस जैसी परियोजना को जमीन पर उतारने के लिए जरूरी धन नहीं मुहैया कराना सवाल खड़े करता है। दरअसल, इस परियोजना के जरिए दिल्ली को राजस्थान और हरियाणा से जोड़ा जाना है। इसके तहत हाईस्पीड रेल सेवा जनता को उपलब्ध करायी जाएगी।
केंद्र और दिल्ली की केजरीवाल सरकार के बीच टकराव
इस परियोजना के पूरा होने से इन स्थानों की यात्रा का समय काफी कम हो जाएगा और लोगों को बेहतर सुविधा मिल सकेगी। माना जा रहा है कि मुफ्त की रेवड़ी बांटने के कारण दिल्ली को पर्याप्त टैक्स नहीं मिल पा रहा है। इसका असर खजाने पर पड़ रहा है। दिल्ली सरकार पर ऋण का बोझ बढ़ता जा रहा है। वहीं केंद्र और दिल्ली की केजरीवाल सरकार के बीच टकराव को भी इसका कारण माना जा रहा है। बावजूद इसके दिल्ली सरकार को इसका जवाब देना पड़ेगा कि क्या वह जनहित को दरकिनार कर सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में दिल्ली सरकार कोर्ट को क्या जवाब देती है।
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