संपादक की कलम से: लोगों की जान से खिलवाड़
Sandesh Wahak Digital Desk: मध्य प्रदेश के हरदा शहर स्थित एक पटाखा फैक्ट्री में भीषण विस्फोट में अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि दो सौ के करीब घायल हुए हैं। कई मकान, दुकान और वाहन क्षतिग्रस्त हुए हैं। मरने वालों की संख्या में इजाफा होने की आशंका है। केंद्र और राज्य सरकार ने मुआवजे का ऐलान किया है और मामले की जांच की जा रही है।
सवाल यह है कि :
- अक्सर पटाखा फैक्ट्री में आग से विस्फोट की घटनाएं क्यों हो रही हैं?
- इन कारखानों में सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था क्यों नहीं की गई है?
- ऐसे हादसों में होने वाली मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है?
- पटाखा कारखानों के सुरक्षा मानकों की सतत निगरानी की व्यवस्था क्यों नहीं की गई है?
- क्या चंद रुपयों के मुआवजे से अपनों को गंवाने वालों के कष्टों को दूर किया जा सकता है?
- क्या आम आदमी के जीवन की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है?
- हादसों के बाद मामले को ठंडे बस्ते में क्यों डाल दिया जाता है?
पूरे देश में पटाखा कारखाने संचालित हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक पटाखों का सालाना कारोबार 6 हजार करोड़ का है। यह छोटे उद्यम की तरह फैले हुए हैं। इनमें अधिकांश बिना लाइसेंस संचालित हैं। कई स्थानों पर घनी बस्तियों में इनके छोटे-छोटे कारखाने चल रहे हैं। आग से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं होने के कारण ये अक्सर हादसों का शिकार होते हैं और लोगों की जान चली जाती है। कड़े नियमों के बावजूद इनकी संख्या बढ़ती जा रही है।
लाइसेंसी कारखानों में भी सुरक्षा मानकों का उल्लंघन
सीजन के दौरान कई इलाकों में घर-घर पटाखे बनाने का काम होता है। लाइसेंसी कारखानों में भी सुरक्षा मानकों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैं। यह सब सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। कारखानों में निर्धारित मात्रा से कहीं अधिक विस्फोटक रखे जाते हैं। मजदूरों की सुरक्षा का कोई प्रबंध नहीं किया जाता है। सरकारी विभाग भी लाइसेंस देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं और इनकी समय-समय पर निगरानी करने की कोई व्यवस्था नहीं बनायी गयी है।
लिहाजा ये वैध-अवैध कारखाने लोगों की जान से खुलेआम खिलवाड़ करते हैं। ऐसा नहीं है कि पुलिस-प्रशासन को अवैध पटाखा कारखानों की जानकारी नहीं होती है लेकिन वे इस ओर से आंखें मूंदे रहते हैं और जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है तो वे कुछ दिन के लिए एक्टिव होते हैं और फिर पुराना ढर्रा शुरू हो जाता है। साफ है, स्थितियां बेहद खराब हो चुकी हैं।
राज्य सरकारों को चाहिए कि वह सबसे पहले जगह-जगह फैले अवैध पटाखा फैक्ट्रियों को बंद कराए। साथ ही लाइसेंस प्राप्त कारखानों में सुरक्षा के मानकों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित कराए। इन कारखानों की सतत निगरानी की व्यवस्था भी कराई जानी चाहिए ताकि हादसों की संख्या को न्यूनतम किया जा सके। इसके अलावा कारखाने में रखे जाने वाले विस्फोटकों की मात्रा पर भी नियंत्रण करना होगा। ऐसा नहीं करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए अन्यथा हालात बद से बदतर हो जाएंगे।