संपादक की कलम से: विपक्षी गठबंधन में अपने-अपने दांव
Sandesh Wahak Digital Desk : भाजपा को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए पिछले साल 26 दलों द्वारा मिलकर बनाया गया विपक्षी गठबंधन (इंडिया) चार बैठकों के बाद ही बिखरने लगा है। पश्चिम बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि वे बंगाल में सभी 42 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगी।
उन्होंने कहा कि गठबंधन में उनके किसी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया न ही कांग्रेस द्वारा निकाली गयी भारत जोड़ो न्याय यात्रा को लेकर कोई बातचीत की गयी। ममता ही नहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी ने भी अकेले चुनाव लडऩे का ऐलान किया है।
सपा से भी सीट बंटवारे पर नहीं बन पा रही बात
यूपी की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा से भी सीट बंटवारे पर बात नहीं बन पा रही है। नीतीश कुमार को गठबंधन का संयोजक नहीं बनाए जाने से जदयू में भी असंतोष है। कुल मिलाकर क्षेत्रीय क्षत्रप गठबंधन में खुश नहीं नजर आ रहे हैं और अपने-अपने दांव चल रहे हैं।
सवाल यह है कि :
- भाजपा और मोदी हराओ के नाम एकजुट हुए विपक्षी दलों में फूट क्यों पड़ रही है?
- क्या वे कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं है?
- सीट बंटवारे को लेकर महाभारत क्यों मची है?
- क्या कांग्रेस और वामपंथियों की मनमानी के कारण हालात बिगड़ चुके हैं?
- क्षेत्रीय दल कांग्रेस को अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में अधिक सीटें देने को क्यों नहीं तैयार है?
गठबंधन में दरार के पीछे आपसी मतभेद कम वोट बैंक की राजनीति अधिक प्रभावी भूमिका निभा रही है। क्षेत्रीय दल मसलन, सपा, तृणमूल कांग्रेस और आप, कांग्रेस को अपने-अपने राज्यों में दो-चार सीटों से अधिक देने को तैयार नहीं है। इसकी बड़ी वजह यह है कि इन दलों के अपने-अपने वोट बैंक हैं, जिसमें अल्पसंख्यकों का वोट बैंक प्रमुख है। कांग्रेस की भी इसी वोट बैंक पर नजर है।
क्षेत्रीय दलों में असमंजस की स्थिति
क्षेत्रीय दलों को यह चिंता है कि यदि उसने कांग्रेस को अधिक सीटें दी तो ये वोट उसकी ओर सिफ्ट होंगे और फिर विधानसभा चुनाव में उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। कांग्रेस भी यही चाहती है कि क्षेत्रीय दलों के प्रभाव का इस्तेमाल कर वह इन राज्यों में अपनी सियासी जमीन को मजबूत कर सके। लिहाजा वह अधिक सीटों की मांग कर रही है।
इसके अलावा कांग्रेस ने गठबंधन के सूत्रधार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पहली ही बैठक से दरकिनार कर इसका नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया है। इससे भी क्षेत्रीय दलों में आक्रोश है। वह अपने प्रस्तावों को क्षेत्रीय दलों पर थोपना चाहती है। इसका खुलासा खुद ममता ने कर दिया है। कांग्रेस और क्षेत्रीय दल अपने-अपने दांव चल रहे हैं।
ममता और पंजाब के सीएम भगवंत सिंह मान का ताजा ऐलान कांग्रेस पर दबाव बनाने के रूप में भी देखा जा रहा है लेकिन यह साफ है कि तीन राज्यों में चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू नहीं बनना चाहती है लिहाजा लोकसभा चुनाव में गठबंधन की राह आसान नहीं दिख रही है।