संपादक की कलम में : सदन में नये नियम के मायने

Sandesh Wahak Digital Desk : उत्तर प्रदेश विधान मंडल के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से पहले सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है कि अब सदन में आने वाले सदस्यों को कुछ नियमों का पालन करना होगा। इसके तहत सदस्य सदन में मोबाइल और झंडा-बैनर नहीं ले जा सकेंगे। इसके अलावा महिला सदस्यों को बहस के दौरान अपना पक्ष रखने को भी प्राथमिकता दी जाएगी। ये बदलाव पिछले सत्र में मंजूर किए गए थे।

सवाल यह है कि :-

  • विधानमंडल को इस प्रकार के नियम बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
  • क्या जनप्रतिनिधियों को भी अब अनुशासन का पाठ पढ़ाना जरूरी हो गया है?
  • क्या सरकार इसके जरिए जनहित के मुद्दे पर सार्थक बहसों को बढ़ावा देना चाहती है?
  • क्या विपक्ष इस नए नियमों का पालन करेगा?
  • क्या अब विधानसभा और विधान परिषद में बेवजह के हंगामे पर रोक लग सकेगी?
  • क्या अन्य राज्यों के लिए ये नियम प्रेरणास्रोत बन सकेंगे?
  • क्या सत्ता और विपक्ष के समन्वय के बिना सदन को सार्थक रूप से चलाया जा सकता है?

उत्तर प्रदेश विधानमंडल ही नहीं बल्कि संसद सत्र तक अक्सर हंगामे की भेंट चढ़ जाते हैं। विपक्ष के हंगामे के कारण कई विधेयक बिना सार्थक बहस के सरकार द्वारा पास कर दिए जाते हैं। इससे जनता को यह नहीं पता चल पाता है कि विधेयक उनके हितों की कितनी पूर्ति करेंगे। यही नहीं ये हंगामे कई बार अराजक स्थिति तक पहुंच जाते हैं।

विपक्षी सदस्य बिना हंगामे के सदन को बाधित कर सकते

विपक्षी दल के सदस्य बाकायदा बैनर-झंडे के साथ पहुंचते हैं और स्थितियां काबू से बाहर हो जाती हैं। लिहाजा सदन को स्थगित करना पड़ता है। इसमें दो राय नहीं कि सरकार ने इन स्थितियों से बचने के लिए झंडे-बैनर को प्रतिबंधित किया है लेकिन इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। विपक्षी सदस्य इसके बिना भी हंगामे के जरिए सदन को बाधित कर सकते हैं। विपक्ष अपने सियासी एजेंडे का ध्यान रखकर सदन में अपना रिएक्शन देते हैं। विधेयकों पर बहस की परंपरा टूटती जा रही है।

हालांकि इसके लिए केवल विपक्ष को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता। सच यह है कि सदन सुचारू रूप से चले इसके लिए सत्ता पक्ष को प्रयत्न करने चाहिए। उन्हें विपक्ष के साथ समन्वय बनाना होगा। वहीं विपक्ष को भी चाहिए कि वह केवल अपने सियासी एजेंडे पर ही नहीं बल्कि जनहित के मुद्दों पर पेश किए जाने वाले विधेयकों पर सदन में बहस करें। उनकी खामियों को सरकार के सामने उजागर करें ताकि जनता भी राजनीतिक रूप से जागरूक हो सके।

सदन की मर्यादा को बनाए रखना सत्ता और विपक्ष दोनों का उत्तरदायित्व है। ऐसा नहीं करने पर जनता में सही संदेश नहीं जाता है और इसका असर चुनाव के दौरान दिखाई पड़ता है। साफ है कि सरकार केवल कुछ चीजों पर प्रतिबंध लगाकर स्थितियों को नहीं संभाल सकती है। सदन तभी सुचारू रूप से चल सकेगा जब सरकार-विपक्ष दोनों ही अपनी-अपनी भूमिका निभाएंगे और विधेयकों पर सार्थक बहस करेंगे।

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