संपादक की कलम से: नए कानूनों को लागू करने के मायने
Sandesh Wahak Digital Desk: देशभर में पहली जुलाई से तीन नए आपराधिक कानून-भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनयम लागू हो गए हैं। इसमें अत्याधुनिक तकनीक को शामिल किया गया है। पहली बार ई-प्राथमिकी का प्रावधान किया गया है और हफ्तेभर में फैसला ऑनलाइन उपलब्ध कराना जरूरी है।
इन कानून के तहत पहली एफआईआर भी दर्ज की जा चुकी है। इस कानून को भारतीयों ने भारतीयों के लिए और भारतीय संसद द्वारा बनाया गया है। इन कानूनों के लागू होने के साथ ही देश में चले आ रहे ब्रिटिश काल में बने कानूनों का खात्मा हो चुका है। सरकार का दावा है कि ये सभी कानून न्याय, पारदर्शिता और निष्पक्षता पर आधारित हैं। हालांकि अभी ये कसौटी पर खरे उतरने बाकी हैं।
सवाल यह है कि :
- जिस तेजी से इन कानूनों को देशभर में लागू किया गया है क्या वे जनता को राहत दे पाएंगे?
- क्या इन कानूनों का पालन कराने वाली पुलिस को इस संदर्भ में पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया जा सका है?
- क्या निर्धारित अवधि के बीच पीडि़त को न्याय मिल सकेगा?
- क्या पेंडिंग में पड़े लाखों केस अब इन कानूनों के जरिए व्याख्यायित किए जाएंगे?
- क्या अदालतों की संख्या बढ़ाए बिना तेजी से न्याय देने की प्रक्रिया को सफल बनाया जा सकता है?
- क्या अधिवक्ताओं को इन कानूनों के अध्ययन और इस पर बहस करने के लिए पर्याप्त समय शुरुआती दौर में अदालतों द्वारा दिया जाएगा?
वैसे आजादी के समय ही भारत के संदर्भ में ब्रिटिश कानूनों को समाप्त कर नए कानूनों का निर्माण किया जाना चाहिए था लेकिन यह स्वतंत्रता के करीब 75 वर्ष बाद किया जा सका है। पिछले साल ही सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने इन कानूनों को पास किया है। हालांकि हिट और रन से संबंधित कानूनों को अभी लागू नहीं किया गया है। इसमें दो राय नहीं कि सरकार ने पूरी नेकनीयत से इन कानूनों को संसद में पास कराया है लेकिन जिस तरह इसे लागू करने की घोषणा की गई है वह निकट भविष्य में इसे लागू करने में दिक्कत पैदा कर सकती है।
पुराने पेंडिंग केस को लेकर भी बढ़ी समस्याएं
सरकार को चाहिए था कि वह इन कानूनों की जानकारी संबंधित विभागों को उपलब्ध कराने के लिए लंबा प्रशिक्षण अभियान चलाती और त्वरित न्याय दिलाने के लिए अदालतों का विस्तार करती। यही नहीं पुराने पेंडिंग केस को लेकर भी समस्याएं पैदा होंगी। इसे लेकर सरकार की ओर से कानून में कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिया है यानी यह अदालतों के ऊपर छोड़ दिया गया है।
दरअसल, आम आदमी को न्याय दिलाने के उद्देश्य से भारतीय संदर्भ में बनाए गए इन कानूनों को तभी जमीन पर उतारा जा सकता है जब न्याय प्रणाली का विस्तार हो। अदालतों के साथ जजों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। साथ ही राज्य सरकारों और अदालतों को इन कानूनों को लेकर प्रशिक्षण अभियान चलाए जाने की जरूरत है। ऐसा नहीं किया गया तो अदालत में पेचींदा स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।