संपादक की कलम से : मणिपुर हिंसा और सुप्रीम कोर्ट
Sandesh Wahak Digital Desk : मणिपुर में जारी हिंसा के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा निर्णय लिया है। अदालत ने हिंसा पीडि़तों के लिए राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे राहत और पुनर्वास कार्यों की निगरानी के लिए न केवल तीन पूर्व महिला जजों की कमेटी बनायी है बल्कि आपराधिक मामलों की जांच की निगरानी के लिए महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस प्रमुख को नियुक्त किया है।
सवाल यह है कि :-
- मणिपुर हिंसा मामले पर सुप्रीम कोर्ट को दखल क्यों देना पड़ा?
- क्या राज्य सरकार कानून व्यवस्था संभालने में नाकाम हो रही है?
- क्या कमेटी पीड़ितों को राहत दिलाने में सफल होगी?
- क्या जांच से सही वस्तु स्थिति का पता चल सकेगा?
- क्या सुप्रीम कोर्ट के इस कदम का अन्य राज्य सरकारों पर कोई असर पड़ेगा?
- क्या बिना अदालत के दखल के राज्य सरकारें जनहित और कानून व्यवस्था के मुद्दे पर गंभीर नहीं होती हैं?
- क्या प्रजातांत्रित प्रणाली में राज्य सरकारों को अपने उत्तरदायित्वों का बोध नहीं है?
पिछले तीन महीने से मणिपुर में जातीय हिंसा की आग जल रही है। यह आग तब लगी जब मैतेई समुदाय के लोगों को हाईकोर्ट ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की सिफारिश राज्य सरकार से की। इसके बाद से यहां मैतेई और कुकी समुदायों में झड़प शुरू हुई जो अभी भी जारी है। हिंसा में अब तक 160 लोगों से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
हिंसा पर पूरी तौर पर लगाम नहीं लग सकी
यही नहीं दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया गया और उनके साथ छेड़खानी की गई। सेना की तैनाती के बाद भी हिंसा पर पूरी तौर पर लगाम नहीं लग सकी है। हिंसा ने सैकड़ों लोगों को अपने घरों को छोडक़र पलायन करने पर मजबूर कर दिया है। दोनों समुदायों के तमाम लोग आज राहत शिविरों में रह रहे हैं।
यह मामला आखिरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और अदालत ने पिछले दिनों पीड़ितों के राहत और पुनर्वास का निर्देश राज्य सरकार को दिया था। अब इसी राहत और पुनर्वास की निगरानी के लिए कोर्ट ने कमेटी का गठन किया है। ये कमेटी शिविरों का भ्रमण करेगी और सही वस्तुस्थिति से कोर्ट को अवगत कराएगी।
जांच की निगरानी की व्यवस्था भी कोर्ट ने की
इसके अलावा हिंसा की जांच की निगरानी की व्यवस्था भी कोर्ट ने की है। यह सच है कि कोर्ट की इस व्यवस्था से राज्य सरकार पर जमीनी स्तर पर राहत और पुनर्वास को बेहतर बनाने का दबाव बनेगा। साथ ही आपराधिक जांच की निगरानी का भी असर जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर पड़ेगा लेकिन इस व्यवस्था से अन्य राज्यों पर कोई असर पड़ेगा इसकी संभावना नहीं है।
दरअसल, मणिपुर में हुई हिंसा सामान्य भीड़ की झड़प या उपद्रव नहीं है बल्कि यह वर्षों से चली आ रहे जातीय संघर्ष का परिणाम है। इसका समाधान केवल शांतिपूर्ण तरीके से किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के दखल से केवल इतना होगा कि हिंसा के दोषियों को जल्द से जल्द सजा मिल सकेगी और प्रभावित को पर्याप्त रूप से राहत मिलेगी लेकिन इस हिंसा को खत्म करने के लिए दोनों पक्षों को एक टेबुल पर बैठकर बात करनी होगी और इसके लिए सरकार को मजबूत पहल करनी होगी।
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