संपादक की कलम से: विदेशी हस्तक्षेप पर लगाम जरूरी
Sandesh Wahak Digital Desk: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में होने जा रहे आम चुनावों पर विश्व के कई प्रमुख देशों की नजरें हैं। इसमें कुछ देश चुनाव को प्रभावित करने के लिए भारत के आतंरिक मामलों पर बयानबाजी कर रहे हैं। इसमें चीन जैसे दुश्मन तो अमेरिका और जर्मनी जैसे मित्र देश भी शामिल हैं। आशंका जताई जा रही है कि चीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बने कंटेंट का उपयोग करके चुनावों को प्रभावित कर सकता है।
अमेरिका और जर्मनी भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किए गए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के खाते फ्रीज किए जाने को लेकर भारत की संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठा चुका है। वहीं अमेरिकी अरबपति जार्ज सोरोस और खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू भी अनाप-शनाप बयानबाजी कर भारत में रह रहे अपने समर्थकों को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं।
सवाल यह है कि :-
- ये देश चुनाव के दौरान अपने बयानों के जरिए भारत के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश क्यों कर रहे हैं?
- अमेरिका और जर्मनी जैसे मित्र देश भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और न्यायपालिका पर सवाल क्यों उठा रहे हैं?
- क्या ये देश भारत में अपनी मनमुताबिक सरकार बनाने के लिए ऐसी कोशिशें कर रहे हैं?
- क्या यह सब कूटनीतिक दांव-पेच का हिस्सा है या फिर इसके पीछे गहरी साजिश है?
- क्या भारत ऐसे हस्तक्षेप को रोकने के लिए कोई ठोस कार्ययोजना को निकट भविष्य में अमल में लाएगा?
भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के जिन देशों में भी लोकतांत्रिक शासन पद्धति है, वहां चीन और अमेरिका जैसे देश अपने हिसाब की सरकारें बनवाने-हटवाने का खेल पर्दे के पीछे से खेलते रहे हैं। चीन अपने पड़ोसी देशों में ऐसी कोशिश लगातार करता रहता है। मालदीव और नेपाल जैसे छोटे देशों में वह इस मामले में सफल भी रहा है। यही हाल अमेरिका का है।
चुनाव प्रक्रिया को विभिन्न माध्यमों से प्रभावित करने की कोशिश
वह भी चीन की तरह दूसरे देशों में चुनाव प्रक्रिया को विभिन्न माध्यमों से प्रभावित करने की कोशिश करता है। इसके लिए उसका पूरा नेटवर्क सक्रिय हो जाता है। यह नेटवर्क अपनी पसंद की सरकार बनाने के लिए हर तरह के दांव-पेच चलता है। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अमेरिका और जर्मनी का यहां की लोकतांत्रिक संस्थाओं पर सवाल उठाना कुछ इसी ओर इशारा कर रहा है क्योंकि मित्र देशों द्वारा चुनाव के दौरान इस प्रकार के बयान कूटनीति का हिस्सा कतई नहीं हो सकते हैं।
हालांकि भारत ने इसका करारा जवाब दिया है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। किसी भी देश द्वारा भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। देश की संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठाने वाली इस विदेशी प्रवृत्ति को मजबूती से रोकना होगा वरना यह चुनाव की संपूर्ण प्रक्रिया और न्यायपालिका की साख को प्रकारांतर से नुकसान पहुंचा सकता है। सरकार को इस पर नजर रखने और इसका जोरदार जवाब देने की जरूरत है।
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