संपादक की कलम से: महंगाई में नरमी बनाम बाजार
Sandesh Wahak Digital Desk: लोकसभा चुनाव से पहले महंगाई के मोर्चे पर राहत के आंकड़े सामने आए हैं। खाद्य उत्पादों की कीमतों में नरमी के कारण फरवरी की तुलना में मार्च में खुदरा महंगाई दर में गिरावट हुई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर घटकर 4.85 प्रतिशत पर रही जो पांच महीने का निचला स्तर है। अक्टूबर 2023 में खुदरा महंगाई दर 4.87 फीसदी थी। वहीं सालाना आधार पर औद्योगिक उत्पादन 5.7 फीसदी बढ़ा है। हालांकि महंगाई पर पूरी तरह लगाम नहीं लग सकी है। यह रिजर्व बैंक के 4 फीसदी के मानक से दूर है।
सवाल यह है कि :
- तमाम कोशिशों के बावजूद महंगाई पर नियंत्रण क्यों नहीं लग पा रहा है?
- क्या लोगों की क्रय शक्ति कम होने के कारण हालात बिगड़ गए हैं?
- सरकारी आंकड़ों के बावजूद जमीन स्तर पर वस्तुओं के दामों में कमी क्यों नहीं नजर आ रही है?
- खुदरा बाजार में दाम गिरने का असर क्यों नहीं पड़ रहा है?
- क्या वस्तुओं के दाम में आई कमी को बिचौलिए हजम कर रहे हैं?
- आखिर इन बिचौलियों पर कौन नियंत्रण करेगा?
- औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोतरी के बाद भी रोजगार के अवसर क्यों नहीं बढ़ रहे हैं?
- क्या इस पर सरकार को गंभीरता से सोचने की जरूरत नहीं है?
डीजल-पेट्रोल के दामों में आई कमी और खाद्य उत्पादों की कीमतों में नरमी का असर सरकारी आंकड़ों में भले दिखाई पड़ रहा हो लेकिन जमीन पर स्थिति जस की तस बनी हुई है। खाद्य वस्तुओं का हाल यह है कि कोई चीज एक बार महंगी हो गयी तो फिर उसमें कमी नहीं आती है। हालांकि सब्जियों व फलों की कीमतों में मौसम के मुताबिक उतार-चढ़ाव दिखता है।
बिचौलिए और बड़े व्यापारी दामों में होने वाली कमी को खुद हजम कर रहे
दालें, अनाज और दुग्ध और इसके उत्पादों में एक बार दाम बढ़े तो फिर शायद ही कभी कम होते हैं, भले ही महंगाई की दर माह-दर-माह घटती क्यों न रहे। साफ है, बिचौलिए और बड़े व्यापारी दामों में होने वाली कमी को खुद हजम कर रहे हैं और जनता खाली हाथ रह जाती है। हैरानी की बात यह है कि इस मामले में सरकार कुछ नहीं कर पा रही है।
वह यह सुनिश्चित करने में विफल रही है कि वस्तुओं के दामों में हुई कमी का फायदा आम जनता को मिल सके। यह स्थिति सरकार के लिए अच्छी नहीं है क्योंकि जनता इसके लिए उसे ही उत्तरदायी मानती है। पैकेट बंद सामानों में तो लूट मची है। मूल्य चाहे जितना घट जाए इनके दामों में इजाफा ही होता है, कमी शायद ही कभी दिखती हो। यही स्थिति औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि को लेकर है।
एक ओर औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हो रही है दूसरी ओर रोजगार के साधन बढ़ते नहीं दिख रहे हैं। साफ है कही न कहीं बड़ी गड़बड़ है। सरकार को यह बात समझनी होगी कि महंगाई तभी नियंत्रित हो सकती है जब मांग के सापेक्ष उत्पादन हो और उत्पादों को खरीदने के लिए लोगों की क्रय शक्ति बढ़े। यह तभी संभव है जब जरूरी दैनिक वस्तुओं को बाजार के हवाले करने से बचाया जाए और रोजगार के साधन बढ़ाए जाएं।
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