संपादक की कलम से: अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते कदम
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक और बड़ी उपलब्धि अपने नाम की है। संस्था ने जीएसएलवी के जरिए दूसरी पीढ़ी के पहले नौवहन उपग्रह एनवीएस-01 का सफल प्रक्षेपण किया।
Sandesh Wahak Digital Desk: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक और बड़ी उपलब्धि अपने नाम की है। संस्था ने जीएसएलवी के जरिए दूसरी पीढ़ी के पहले नौवहन उपग्रह एनवीएस-01 का सफल प्रक्षेपण किया। इसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया है। इससे न केवल देश की क्षेत्रीय नौवहन प्रणाली मजबूत होगी बल्कि यह दुश्मनों की सटीक जानकारी भी सेकेंडों में उपलब्ध करा देगी। ऐसा पहली बार है जब स्वदेशी तकनीक से विकसित रुबिडियम परमाणु घड़ी का भी प्रक्षेपण में इस्तेमाल किया गया।
सवाल यह है कि…
- इसरो की इस उपलब्धि के मायने क्या हैं?
- इसका देश की अर्थव्यवस्था व विश्व के अंतरिक्ष बाजार पर क्या असर पड़ेगा?
- क्या यह असैन्य के साथ सैन्य क्षेत्र के लिए भी उपयोगी साबित होगा?
- पहली पीढ़ी के उपग्रहों की स्थिति क्या है?
- क्या दुनिया के तमाम देशों को इस उपग्रह के जरिए जानकारी उपलब्ध करायी जा सकेगी?
अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसरो अपनी उपलब्धियों से लगातार दुनिया को अपना लोहा मनवा रहा है। दूसरी पीढ़ी के नौवहन उपग्रह को लॉन्च करना इसकी एक कड़ी है।
आम आदमी भी कर सकता है इस्तेमाल
दरअसल, भारत को इसकी बेहद जरूरत थी क्योंकि देश के सात नौवहन उपग्रहों में तीन खराब हो चुके हैं। इसरो ने इनको बदलने की बजाए नयी पीढ़ी का उपग्रह तैयार किया जो पुरानी पीढ़ी के उपग्रह से तकनीक में बेहद उन्नत है। इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह संकेतों की मदद से उपयोगकर्ता की 20 मीटर के दायरे में स्थिति व 50 नैनोसेकंड के अंतराल में समय की सटीक जानकारी उपलब्ध करा देगा। आम आदमी से लेकर सेना तक इसका इस्तेमाल कर सकती है। सेना को इसके जरिए अपने दुश्मन के सटीक लोकेशन का पता चल जाएगा। इसके कारण भारत की अमेरिका के जीपीएस पर से निर्भरता कम हो जाएगी।
सस्ते उपग्रह की मांग तेजी से बढऩे की उम्मीद
इसरो की इस सफलता से विश्व के अंतरिक्ष बाजार में भारत की दमदार उपस्थिति भी दर्ज हो गई है। अविकसित और विकासशील देश भी इस उपग्रह का लाभ अपने गैरसैन्य क्षेत्र के लिए कर सकते हैंं। जाहिर है इसके बदले वे इसरो को डॉलर के जरिए भुगतान करेंगे और इस धनराशि का प्रयोग नए अनुसंधान में किया जा सकेगा। इस उन्नत और सस्ते उपग्रह की मांग भी तेजी से बढऩे की उम्मीद है। विशेषकर उन देशों में जो समुद्रीय इलाकों से संयुक्त हैं क्योंकि इसके जरिए खराब मौसम में मछुआरों और जलपरिवहन को बेहतर सुरक्षा मिल सकेगी।
आने वाले दिनों में इसरो देश के विकास में देगी अपना योगदान
सच यह है कि इसरो का अंतरिक्ष में बढ़ता दबदबा देश के लिए बेहद लाभकारी है। एक साथ सौ से अधिक उपग्रह प्रक्षेपण का मामला हो या मंगलयान को मंगल तक भेजने का, सभी में इसरो के वैज्ञानिकों ने महान उपलब्धियां हासिल की है। उपग्रह प्रक्षेपण की सफलता और साख का आलम यह है कि अमेरिका व यूरोपीय देश भी भारत के जरिए अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेजना पसंद करते हैं। स्पष्ट है, आने वाले दिनों में इसरो की यह उपलब्धि देश के विकास में अपना योगदान देगी।
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