संपादक की कलम से : एशियाई खेलों में भारत की उपलब्धि
Sandesh Wahak Digital Desk : चीन में चल रहे एशियाई खेलों में भारतीय खिलाडिय़ों का शानदार प्रदर्शन जारी है। इस प्रदर्शन के बलबूते ही भारत ने नयी इबारत लिखी है। देश ने अपने पिछले रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। भारतीय खिलाड़ी अभी तक देश की झोली में 86 पदक डाल चुके हैं और इसमें इजाफा होने की संभावना है। यह पिछले 70 पदकों के रिकॉर्ड से अधिक है। यह दीगर है कि भारत पदक तालिका में चौथे नंबर पर है और चीन से काफी पीछे है।
सवाल यह है कि :-
- जनसंख्या में चीन से अधिक होने के बाद भी भारत पदक तालिका में पीछे क्यों रह गया?
- क्या चीन की खेलनीति और युवा खिलाड़ियों को उपलब्ध करायी जाने वाली सुविधाएं इसकी बड़ी वजह हैं?
- क्या भारत में खेल संघों की राजनीति और लचर खेल सुविधाएं युवा प्रतिभाओं की राह में सबसे बड़ा रोड़ा हैं?
- क्या भारतीय खिलाड़ियों की उपलब्धि देश की केंद्र और राज्य सरकारों को खेलों के प्रति जिम्मेदार बना सकेगी?
- क्या केवल उपलिब्धयों पर प्रशंसा कर देने भर से युवा खिलाडिय़ों की बड़ी खेप तैयार हो जाएगी?
- क्या खेल के मामले में भारत जापान जैसे छोटे देशों से सबक सीखेगा?
एशियाई खेलों में मिली सफलता बेहद शानदार है और इसमें दो राय नहीं कि केंद्र सरकार की खेलनीति और खेलो इंडिया जैसे कार्यक्रम ने इसमें उत्प्रेरक का काम किया है लेकिन युवाओं के देश भारत में एशियाई खेलों में पदकों की इतनी संख्या पर्याप्त नहीं कही जा सकती। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार की नीतियां और खेल संघ जिम्मेदार हैं। खेल संघों में भाई-भतीजावाद के कारण युवा खेल प्रतिभाएं सामने नहीं आ पाती हैं।
खेलो इंडिया का अभियान चलाने भर से स्थितियां बदलने वाली नहीं
यही नहीं खेल संघ देश में खेल प्रतिभाओं को खोजने और तराशने की बजाए सियासी दांव-पेच चलने में ही अधिक व्यस्त दिखते हैं। हाल में भारतीय कुश्ती संघ के पदाधिकारियों के खिलाफ जिस तरह के शर्मनाक आरोप लगे हैं वे खेल संघों को कठघरे में खड़ा करते हैं। यही नहीं खेलो इंडिया का अभियान चलाने भर से स्थितियां बदलने वाली नहीं है।
खेल प्रतिभाएं तभी सामने आती हैं जब प्राथमिक स्तर पर बच्चों के अंदर खेलों के प्रति रुचि जाग्रत की जाए लेकिन यह बिना खेल सुविधाओं के संभव नहीं हो सकता है। सच यह है कि देश के अधिकांश सरकारी स्कूलों में खेल की बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। इन स्कूलों में खेल का मैदान और खेल उपकरण तक नहीं हैं। एथलेटिक्स के अभ्यास के लिए मिनी स्टेडियम बेहद कम है।
जहां हैं भी वे सिर्फ क्रिकेट, हॉकी या कुछ इंडोर गेम्स तक सिमट चुके हैं। ट्रैक एंड फील्ड का अता-पता नहीं होता है। जाहिर है, यदि राज्य और केंद्र सरकार युवा खिलाडिय़ों को आगे बढ़ाना चाहती है और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में उनके गले में मेडल देखना चाहती है तो उसे खेलों के विकास पर गौर करना होगा। हर खेल पर फोकस करना होगा अन्यथा हम शायद ही कभी पदक तालिका में पहले स्थान पर पहुंच सकें।
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