संपादक की कलम से: सत्ता पक्ष-विपक्ष में रार के निहितार्थ

Sandesh Wahak Digital Desk: पिछले दस सालों से सत्ता पक्ष और विपक्ष में तकरार का स्तर साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है। विपक्ष संसद से लेकर सडक़ तक सरकार का विरोध तो कर ही रहा है लेकिन देश और राज्यों के विकास के लिए बनने वाली बुनियादी नीतियों के लिए बुलाई गयी नीति आयोग की बैठक का भी बहिष्कार किया है। विपक्ष शासित राज्यों से एक मात्र पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नीति आयोग की बैठक में पहुंचीं लेकिन वे बीच बैठक से यह कहते हुए बाहर आ गयीं कि उनको बोलने नहीं दिया गया।

सवाल यह है कि :

  • क्या विपक्षी दलों के मुख्यमंत्री नीति आयोग की बैठक में सिर्फ सत्ता पक्ष का विरोध करने के लिए नहीं गए या इसके पीछे कुछ अन्य कारण है?
  • क्या सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच मतभेद की जगह मनभेद ने ले ली है?
  • क्या विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को केंद्र के सामने अपने राज्य की जरूरतों की जानकारी नहीं देने को उचित कहा जा सकता है?
  • क्या यह राज्य की जनता के साथ धोखा नहीं है?
  • क्या सियासी एजेंडे के तहत ऐसा रवैया अपनाया जा रहा है?
  • क्या विपक्ष तीसरी बार राजग को मिली सफलता को पचा नहीं पा रहा है और प्रकारांतर से दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है?
  • क्या इससे संबंधित राज्यों का विकास अवरुद्ध नहीं होगा?

नीति आयोग की नौवीं शासी परिषद की बैठक देश के विकास की रूपरेखा तय करने के लिए बुलाई गई थी। इसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया गया और उनसे अपने-अपने राज्यों में विकास की संकल्पना पर जानकारी देनी थी। कुल मिलाकर इससे सभी राज्यों की खूबियों और खामियों का पता चलता है और फिर केंद्र सरकार संबंधित राज्यों के लिए विभिन्न प्रकार के पैकेज या आर्थिक मदद मुहैया कराती है।

नीति आयोग की बैठक में मंत्रियों ने लिया था हिस्सा

ताजा नीति आयोग की बैठक की संकल्पना विकसित भारत पर आधारित रहा। सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बैठक में बुलाया भी गया लेकिन बजट सत्र में हुए घमासान के बाद साफ हो गया था कि विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्री इसमें भाग नहीं लेंगे। ममता को छोडक़र किसी भी विपक्षी दल के मुख्यमंत्री ने इसमें भाग नहीं लिया। सच यह है कि बिना राज्यों के सर्वांगीण विकास के देश विकसित राष्ट्र नहीं बन सकता है। ऐसे में विपक्ष शासित मुख्यमंत्रियों द्वारा बैठक में न जाना सियासी एजेंडा ज्यादा नजर आता है। विपक्ष सिर्फ विरोध के लिए विरोध कर रहा है और अपने राज्य के विकास को लेकर भी चिंतित नहीं दिख रहा है।

दरअसल, अपने राज्यों के विकास के लिए केंद्र सरकार पर तभी दबाव डाला जा सकता है जब नीति आयोग या ऐसी अन्य बैठकों में विपक्षी दलों के मुख्यमंत्री शामिल हों। हालांकि विपक्ष के हालिया रवैए से सरकार पर दबाव बनेगा या नहीं लेकिन यह उनके राज्यों के विकास को कुंद अवश्य कर देगा। वहीं केंद्र को चाहिए कि वह विपक्ष से सार्थक संवाद स्थापित करे ताकि राज्यों के साथ मिलकर देश के विकास को रफ्तार दी जा सके।

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