संपादक की कलम से: नफरती बयानों पर तत्काल हो कार्रवाई
Sandesh Wahak Digital Desk: पिछले कुछ वर्षों से देश की फिजां में असहिष्णुता शब्द तेजी से गूंज रहा है। ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिन्होंने सामाजिक सद्भाव को चोट पहुंचाई है। उत्तर प्रदेश ऐसी कई घटनाओं का गवाह है जहां एक धर्म और संप्रदाय के लोग दूसरे धर्म व संप्रदाय के लोगों की आस्था व उनके महापुरुषों के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणियां कर रहे हैं। इन टिप्पणियों से आहत लोग आक्रोशित होकर सडक़ पर उतरते हैं। इसे लेकर कई बार स्थितियां हिंसक भी हो जाती हैं।
सवाल यह है कि :
- क्या देश और प्रदेश में सामाजिक सद्भाव को बरकरार रखने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है?
- धर्म आधारित विवादित बयान देने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है?
- क्या केंद्र और राज्य सरकारों को इस पर मंथन नहीं करना चाहिए?
- क्या यदि हुकूमत चाह जाए तो कोई व्यक्ति समाजिक सद्भाव को चोट पहुंचाने वाली टिप्पणी कर सकता है?
ऐसे ही एक बयान के बाद उत्तर प्रदेश के कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। एक आध स्थानों पर पथराव और तोडफ़ोड़ जैसी घटनाएं भी घटी हैं। इसके बाद सीएम योगी ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि किसी भी जाति, मत-मजहब अथवा संप्रदाय से जुड़े इष्ट देवी-देवताओं, महापुरुषों अथवा साधु-संतों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी स्वीकार्य नहीं है। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया है कि विरोध के नाम पर अराजकता भी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इसमें दो राय नहीं कि किसी की भी आस्था को आहत करने वाली टिप्पणियां सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं की जा सकती हैं।
सामाजिक ताने-बाने को छिन्न भिन्न करते हैं ऐसे बयान
ऐसे बयान सामाजिक ताने-बाने को न केवल छिन्न भिन्न करते हैं बल्कि स्थायी रूप से नफरत का बीज बोने का काम करते हैं। भारत में इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों वाला देश है। सदियों से यहां लोग एक साथ मिलकर रहते आए हैं। भारतीय संविधान निर्माताओं ने इस बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक समन्वय को ध्यान में रखा और संविधान को धर्मनिरपेक्ष बनाया।
संविधान में सभी को अपनी आस्था और धर्म का पालन करने का अधिकार है लेकिन यह विड़बना ही है कि देश जैसे-जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उदारवादी और आर्थिक रूप से तेजी से आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे इसकी सामाजिक समरसता पर कुठाराघात करने की कोशिश की जा रही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस स्थिति के लिए अधिकांशत: सियासी दल और सरकारें जिम्मेदार हैं। सियासी दल सांप्रदायिक जहर फैलाकर अपनी सियासी रोटियां सेंक रहे हैं। हालत यह है कि सोशल मीडिया से लेकर टीवी के लाइव बहसों तक में खुलेआम एक-दूसरे के धर्म और आस्था पर चोट करने वाली टिप्पणियां की जा रही हैं।
ऐसे में भारतीय संविधान की शपथ लेने वाली सरकारों का यह दायित्व बनता है कि वह भारत के सामाजिक सद्भाव को बरकरार रखे। यदि केंद्र और राज्य सरकारें ऐसी टिप्पणी करने वालों के खिलाफ सख्त और त्वरित कार्रवाई करें तो कोई कारण नहीं है कि हालात में बदलाव न हो। त्वरित कार्रवाई नहीं होने के कारण ही लोगों का आक्रोश बढ़ता है और वे सडक़ पर उतरते हैं। ऐसे में सरकार को इस पर मंथन करने की जरूरत है।
-सूर्यकांत त्रिपाठी (स्थानीय संपादक)