संपादक की कलम से: महंगाई पर बेबसी

Sandesh Wahak Digital Desk: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लगातार नौवीं बार रेपो दर में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया है और इसे 6.5 फीसदी पर बरकरार रखा है। इससे महंगाई की मार से जूझ रहे लोगों को फिलहाल घर और कार समेत अन्य लोन पर लगने वाले ब्याज दर में कोई राहत नहीं मिलने वाली है।

हालांकि लोगों को उम्मीद थी कि केंद्रीय बैंक आम आदमी को राहत देने के लिए महंगाई को लेकर अहम कदम उठाएगा। केंद्रीय बैंक ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक मुद्रास्फीति की दर चार फीसदी नहीं हो जाती महंगाई को नियंत्रित करना मुश्किल होगा। खाद्य महंगाई बढऩे से खुदरा मुद्रास्फीति 5.08 प्रतिशत है।

सवाल यह है कि :

तमाम कोशिशों के बावजूद देश में महंगाई में कमी क्यों नहीं हो रही है?

लगातार वस्तुओं के दाम आसमान पर क्यों पहुंच रहे हैं?

बाजार में मांग और आपूर्ति में संतुलन क्यों नहीं स्थापित हो पा रहा है?

क्या यह देश में बढ़ती बेरोजगारी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरावट का परिणाम है?

क्या आम आदमी की आमदनी बढ़ाए बिना महंगाई को नियंत्रित किया जा सकता है?

आखिर लोगों को राहत देने के लिए सरकार कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा रही है?

कोरोना के बाद से देश में महंगाई ने जो रफ्तार पकड़ी है, वह थमने का नाम नहीं ले रही है। इसमें दो राय नहीं कि ग्लोबल इकोनॉमी के युग में इस पर वैश्विक आर्थिक गतिविधियों का भी असर पड़ा है। रूस-यूक्रेन युद्ध और विश्व के विभिन्न देशों में चल रही अशांति या विद्रोह ने हालात को और बिगाड़ दिया है। यूरोपीय देश और अमेरिका पर रूस-यूक्रेन युद्ध का सीधा असर पड़ा है। यहां खाद्य पदार्थों की कमी के कारण महंगाई आसमान छू रही है।

खाद्य पदार्थ की कीमतों से बढ़ी परेशानी

इन देशों की अर्थव्यवस्था डगमगा रही है और वे भारत या अन्य देशों में निवेश करने की स्थिति में नहीं हैं। इसके कारण भारत में रोजगार सृजन की स्थिति ठीक है। हालांकि भारत सरकार ने स्वरोजगार पर फोकस किया है। वह युवाओं को प्रशिक्षित करने के बाद ऋण की सुविधा उपलब्ध कराकर स्वरोजगार की ओर प्रेरित कर रही है लेकिन इसकी सबसे बड़ी समस्या बाजार में गिरावट है। महंगाई के कारण लोगों की क्रय शक्ति प्रभावित हुई है। ऐसे में लोग जीविका के लिए जरूरी वस्तुओं को छोडक़र अतिरिक्त वस्तुओं की खरीदारी से बच रहे हैं। खाद्य वस्तुओं के दामों में इजाफे ने भी लोगों की हालत खराब कर दी है।

रिजर्व बैंक भी इस बात को स्वीकार कर रहा है कि जब तक खाद्य मुद्रास्फीति कम नहीं होगी महंगाई को काबू करना मुश्किल होगा। साफ है यदि सरकार महंगाई पर नियंत्रण लगाना चाहती है तो उसे न केवल स्वरोजगार के साधनों का तेजी से विकास करना होगा बल्कि इन उद्यमों के उत्पादों की बाजार में बिक्री भी सुनिश्चित करनी होगी। इसके अलावा उसे कम से कम जरूरी खाद्य पदार्थों को बाजार के चंगुल से मुक्त कराना होगा अन्यथा स्थितियों के सुधरने की उम्मीद नहीं है।

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