संपादक की कलम से: बाढ़ नियंत्रण पर फोकस जरूरी

Sandesh Wahak Digital Desk: हर साल बरसात के मौसम में देश के अधिकांश राज्यों में बाढ़ की विभिषिका  दिखाई देती है। इस बार भी पूर्वोत्तर के राज्यों में बाढ़ का कहर शुरू हो गया है और यह धीरे-धीरे मैदानी इलाके की ओर बढ़ रहा है। इसके कारण हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं। बाढ़ से जन-धन की हानि होती है। फसलें बर्बाद हो जाती हैं। मौसम विभाग के मुताबिक इस बार देश में सामान्य से अधिक बारिश हो सकती है। इसके मद्देनजर विभिन्न राज्यों ने बाढ़ से निपटने की तैयारियां शुरू कर दी है। अधिकारियों को दिशा-निर्देश दिए जा चुके हैं। बाढ़ कंट्रोल रूम को सक्रिय कर दिया गया है।

इन सबके बावजूद सबसे बड़ा सवाल यह है कि :-

  • बाढ़ नियंत्रण को आज तक देश में कोई ठोस कार्ययोजना क्यों नहीं बनायी गई?
  • आखिर साल दर साल बाढ़ भयावह क्यों होती जा रही है?
  • क्या सिर्फ प्राकृतिक कारण बाढ़ के लिए जिम्मेदार हैं या मानवीय गतिविधियां हालात को खराब कर रहे हैं?
  • क्या सरकारों ने आज तक इसके मूल कारणों को दूर करने का उपाय नहीं किया है?
  • आखिर थोड़ी सी बारिश में ही नदी-नाले उफनाने क्यों लगते हैं?

तमाम दावों के बावजूद देश में बाढ़ हर साल भयावह होती जा रही है। इसका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसकी बड़ी वजह भू स्थिति और नदियों को नजरअंदाज करना है। दरअसल, नदियों में बाढ़ के साथ गाद यानी कीचड़ और कंकड़ पत्थर बहकर आते हैं। ये नदी के तल पर जम जाते हैं। यह प्रक्रिया लगातार जारी है। इसके कारण नदियों की पानी की भरण क्षमता कम हो गई है। इसके अलावा बांधों से बारिश के दौरान नदियों में पानी छोड़ा जाता है।

तालाबों और पोखरों की संख्या में आ रही कमी

ऐसे में नदियां उफान पर आ जाती हैं और अपने आसपास के इलाकों को चपेट में ले लेती हैं। वहीं शहरों में नदियों के किनारे अवैध अतिक्रमण कर बस्ती बसा लेने के कारण भी बाढ़ भयानक रूप ले लेती है। नदी के किनारे की बसावट सबसे पहले बाढ़ की चपेट में आती है। वहीं तालाबों और पोखरों की संख्या में लगातार आ रही कमी भी बाढ़ के भयावह बनने की बड़ी वजह है। ये पोखर और तालाब बारिश के पानी को अपने भीतर समाहित कर लेते थे लेकिन अब यह पानी सीधे नालों के जरिए नदियों में जा रहा है। इस सबने मिलकर नदियों पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है और थोड़ी बारिश में ही ये उफनाने लगती है।

बावजूद इसके सरकार इन कारणों को कम करने की बजाय हर साल बाढ़ नियंत्रण नीति बनाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है। केंद्र और राज्य सरकारें यदि बाढ़ को नियंत्रित करना चाहती हैं तो उसे न केवल नदियों में जमा गाद को बाहर निकालकर उसे गहरा करना होगा बल्कि पोखर और तालाबों की संख्या भी बढ़ानी होगी। साथ ही नदी किनारे अवैध बसावट को भी रोकना होगा अन्यथा स्थितियां बिगड़ती जाएंगी और हर साल जन-धन की हानि होती रहेगी। कुल मिलाकर मूल कारणों को समाप्त कर ही बाढ़ को नियंत्रित किया जा सकता है।

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