संपादक की कलम से: भीड़ नियंत्रण में नाकामी

Sandesh Wahak Digital Desk: उत्तराखंड के केदारनाथ और यमुनोत्री में उमड़ी भीड़ को नियंत्रित करने में एक बार फिर राज्य सरकार नाकाम रही। अव्यवस्था के कारण यमुनोत्री जाने वाले रास्तों में लोग घंटों फंसे रहे। तमाम श्रद्धालुओं को वाहनों में ही रात गुजारनी पड़ी। यह कोई पहला मौका नहीं है जब भीड़ को नियंत्रित करने में प्रशासन विफल रहा है। उत्तर प्रदेश समेत देश के अधिकांश राज्यों में भीड़ से निपटने के लिए आज तक कोई साख रणनीति नहीं बनी। लिहाजा कई बार भगदड़ मची और लोगों की जाने भी गई हैं।

सवाल यह है कि :

  • भीड़ को काबू करने में राज्य सरकारें विफल क्यों हो रही हैं?
  • क्या बिना योजना के लोगों को मंदिर व अन्य सार्वजनिक समारोहों में भेज दिया जाता है?
  • क्या अव्यवस्था के लिए प्रशासन की लापरवाही जिम्मेदार है?
  • भारी भीड़ के चलते हुई दुर्घटना का जवाबदेह कौन होगा?
  • पूर्व में समारोहों और मंदिरों में होने वाले आयोजनों की जानकारी के बाद भी भीड़ को काबू करने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किया जाता है?
  • क्या देश भीड़ को नियंत्रित करने के गुर विदेशों से सीखेगा?

विभिन्न संस्कृतियों वाले देश भारत में आए दिन किसी न किसी कोने में बड़े कार्यक्रम आयोजित होते हैं। मंदिरों के कपाट खुलते हैं या अन्य धर्मस्थलों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम होते हैं। इस दौरान यहां लोगों की भीड़ उमड़ती है। इन आयोजनों की जानकारी आयोजक या ट्रस्टी प्रशासन को काफी दिन पहले से दे देते हैं। साथ ही भारी भीड़ आने का अनुमान भी जता देते हैं। अब प्रशासन का काम होता है कि आयोजन सकुशल संपन्न हो जाए और भीड़ नियंत्रित रहे ताकि कोई अप्रिय घटना न घटे।

प्रशासनिक तंत्र भीड़ को नियंत्रित करने में नाकाम साबित

बावजूद इसके प्रशासनिक तंत्र भीड़ को नियंत्रित करने में नाकाम साबित होता है। यमुनोत्री और केदारनाथ में उमड़ी भीड़ पर काबू पाने में प्रशासन की विफलता इसका ताजा नमूना है। यही नहीं सामान्य दिनों में भी मंदिरों में उमड़ी भीड़ को कंट्रोल करने में पुलिस-प्रशासन को काफी मशक्कत करनी होती है। वहीं दूसरी ओर दुनिया के अन्य देशों में भारी भीड़ को आसानी से नियंत्रित कर लिया जाता है। यही वजह है कि यहां शायद ही कभी कोई अप्रिय घटना घटी हो।

इसके ठीक विपरीत भारत में भगदड़ की घटनाएं होती रहती हैं। भगदड़ के बाद पुलिस प्रशासन अचानक सक्रिय हो जाता है और जैसे ही मामला ठंडा होता है, वे पुराने ढर्रे पर लौट आता है।

साफ है कि राज्य सरकारों को भीड़ को नियंत्रित करने के लिए ठोस रणनीति बनानी होगी और उसे अमलीजामा पहनाना होगा। इसके लिए पुलिसकर्मियों को उच्च प्रशिक्षण देने की भी जरूरत है। राज्य सरकारों को इसके लिए विदेशी विशेषज्ञों की मदद भी लेनी चाहिए ताकि भारी भीड़ को नियंत्रित करने का तरीका सीखा जा सके। इससे लोग समारोहों में आसानी से भागीदारी कर सकेंगे और उन्हें तमाम समस्याओं से दो-चार नहीं होना पड़ेगा। यदि ऐसा नहीं किया गया तो स्थितियां कभी भी बिगड़ सकती हैं।

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