संपादक की कलम से: जंगलों की कटाई व सुप्रीम कोर्ट

Sandesh Wahak Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट ने वन क्षेत्र में हो रही कमी पर न केवल चिंता जताई है बल्कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जंगलों की कटाई पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। कोर्ट ने केंद्र से वन क्षेत्रों का विस्तृत ब्यौरा भी मांगा है। दरअसल, कोर्ट ने यह रोक वन संरक्षण कानून 2023 के तहत वन की परिभाषा में लगभग 1.99 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि को वन दायरे से बाहर करने के फैसले पर सुनवाई के बाद लगाई।

सवाल यह है कि:

  • आखिर सरकार इस मामले पर गंभीर क्यों नहीं है?
  • क्या सत्ताधारी दलों के एजेंडे में पर्यावरण संरक्षण नहीं है?
  • क्या विकास के नाम पर वनों की कटाई को कानूनी जामा पहनाने को उचित कहा जा सकता है?
  • क्या इस भूमि के बदले प्रतिपूर्ति भूमि और उस भूमि पर जंगल लगाने की व्यवस्था नहीं की जानी चाहिए?
  • क्या वैध और अवैध तरीके से हो रही जंगलों की कटाई पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं है?
  • जब पूरे देश में वन क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए वृक्षारोपण अभियान चलाया जा रहा है तो इस प्रकार का संशोधन क्यों किया गया?

पूरे देश में हर वर्ष करोड़ों वृक्षों का रोपण करने के बाद भी जंगलों में पर्याप्त वृद्धि नहीं हो रही है। जंगलों को एक ओर आग नष्टï कर रही है तो दूसरी ओर पेड़ों की अवैध कटाई कर उसे खत्म किया जा रहा है। इसमें दो राय नहीं कि यह बिना सरकारी कर्मियों के मिलीभगत के नहीं हो रहा है। जहां वनकर्मी मौजूद नहीं रहते हैं वहां की स्थिति और भी बदतर हो चुकी है। कई बार जंगलों को नष्टï करने के लिए साजिशन आग लगाने की घटनाएं भी घटित होती है। नए वन संरक्षण काननू से लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन को वन क्षेत्र से बाहर करना सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करता है।

सरकार की मंशा के मुताबिक जंगल क्षेत्र का तेजी से विकास नहीं हो पाता

हालांकि हर साल करोड़ों वृक्षों का रोपण किया जाता है लेकिन उनकी हकीकत भी किसी से छिपी नहीं है। अभियान के दौरान वृक्षारोपण करने वाले विभाग और इसके अधिकारी इन वृक्षों का रोपण कर भूल जाते हैं। रख-रखाव के अभाव में अधिकांश पौधे सूख जाते हैं और सरकार की मंशा के मुताबिक जंगल क्षेत्र का तेजी से विकास नहीं हो पाता है। दूसरी ओर सरकार विकास कार्यों के लिए वन संपदा को नुकसान पहुंचाती है। विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में जंगलों की सफाई कर वहां रोड और बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें बनायी जा रही हैं। इससे प्रकृति के संतुलन को नुकसान पहुंच रहा है।

प्रकृति केंद्रीत विकास नहीं होने के कारण पहाड़ कमजोर हो गए हैं और बारिश के समय ये टूटने लगते हैं। इसके अलावा वन वर्षा जल का पृथ्वी के भूगर्भ जल के संरक्षण के भी बड़े स्रोत है। पेड़ों की जडें वर्षा के पानी को खींचकर जमीन के नीचे पहुंचाती हैं। इससे भूगर्भ जल का स्तर बढ़ता है। पेड़ों की कटाई से इस पर विपरीत असर पड़ रहा है।  जाहिर है, सरकार को पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी नीतियों में संशोधन की जरूरत है ताकि वन क्षेत्रों में कमी की बजाए वृद्धि हो। सुप्रीम कोर्ट के ताजे आदेश से वन संरक्षण को लेकर उम्मीद की नयी किरण जगी है।

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