संपादक की कलम से: साइबर अपराध और सरकारी तंत्र
Sandesh Wahak Digital Desk : देश में साइबर अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। तमाम दावों के बावजूद इस पर नियंत्रण नहीं लग पा रहा है। हालांकि बड़ी ठगी के केस में केंद्रीय एजेंसियां अब सक्रिय होने लगी हैं। सीबीआई, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय साइबर अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए ऑपरेशन चक्र चला रही हैं। इस अभियान के तहत पिछले साल 115 और इस साल हाल में देशभर के 76 ठिकानों पर छापेमारी की गई है। एजेंसी ने कई डिजिटल दस्तावेज भी जब्त किए हैं। इन मामलों में अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक की एजेंसिया सीबीआई के साथ मिलकर काम कर रही हैं।
सवाल यह है कि :-
- साइबर अपराधियों के नेटवर्क पर प्रहार कब होगा?
- क्या बड़े अपराधियों को पकड़ लेने भर से साइबर अपराध का जाल खत्म हो जाएगा?
- प्रदेश और देश के लोगों को साइबर सुरक्षा कब उपलब्ध करायी जा सकेगी?
- क्या बिना जागरूकता के लोग ऐसे अपराधियों से बच सकेंगे?
- क्या हमारी पुलिस व्यवस्था इतनी सक्षम है कि हाईटेक अपराधियों तक आसानी से पहुंच सकती है?
- साइबर अपराधियों से निपटने के लिए कोई ठोस रणनीति क्यों नहीं बनायी जा रही है?
इंटरनेट के प्रसार के साथ दुनिया में एक नए तरीके का अपराध तेजी से पनपा। इसे ही साइबर अपराध कहा जाता है। ये साइबर अपराधी दुनिया के किसी कोने में बैठकर लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। ये अपराधी सामान्य अपराधियों से अलग बेहद हाईटेक होते हैं और सेल फोन पर एक गलत क्लिक किसी भी नागरिकों को इनके दरवाजे पर खड़ा कर देती है और ये आसानी से उसके खाते की जमा पूंजी अपने नाम ट्रांसफर कर लेते हैं। ये अपराध बड़े और छोटे दोनों ही स्तर पर हो रहे हैं। यह स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपनी जड़ें जमा चुका है।
साइबर आपराधियों को पकड़ना पुलिस के लिए हो रहा कठिन
स्थानीय स्तर पर अपराधी एटीएम कार्ड या फोन कॉल के जरिए लोगों को झांसे में लेकर ठगी करते हैं और कई बार पकड़ भी लिए जाते हैं लेकिन बड़े नेटवर्क के जरिए साइबर क्राइम करने वाले अपराधियों को पकड़ना तो छोड़िए ट्रेस करना भी पुलिस के लिए कठिन होता है।
हैरानी की बात यह है कि साइबर अपराधों की संख्या में इजाफा होने के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारें आज तक कोई ठोस रणनीति नहीं बना सकी है। राज्य में पुलिस अपनी पुरानी लकीर पर चल रही है। वह सामान्य अपराधियों से निपटने के ही गुर जानती है। अधिकांश राज्यों में साइबर थाने नहीं हैं। लिहाजा ऐसे अपराधियों के हौसले और भी बुलंद हो चुके हैं और वे अपराध कर आसानी से पुलिस की चंगुल से बच जाते हैं और पीडि़त को न्याय नहीं मिल पाता है।
साफ है साइबर अपराधों से तभी बचा जा सकता है जब देश प्रदेश के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनके खिलाफ ठोस रणनीति बनायी जाए। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर साइबर थानों के साथ आम जनता को जागरूक किया जाए अन्यथा एक-दो बड़ी मछली पकडऩे से यह रुकने वाला नहीं।
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