संपादक की कलम से : परीक्षा में विकल्प ही पर्याप्त नहीं

Sandesh Wahak Digital Desk : केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 10वीं और 12वीं की साल में दो बार होने वाली बोर्ड परीक्षा को वैकल्पिक घोषित कर दिया है। उनका कहना है कि छात्रों का तनाव कम करने के लिए परीक्षा पद्धति में यह सुधार किया गया है। अब किसी छात्र का साल में दो बार बोर्ड परीक्षा में बैठना जरूरी नहीं होगा। निश्चित रूप से सरकार का यह कदम सराहनीय है।

सवाल यह है कि :-

  • साल में दो बार होने वाली बोर्ड परीक्षा को वैकल्पिक कर देने भर से छात्रों का तनाव कम हो जाएगा?
  • क्या केवल परीक्षा ही छात्रों के तनाव का एकमात्र कारण है?
  • क्या स्कूल और कॉलेजों में परीक्षा के पहले तक आधा-अधूरा पाठ्यक्रम पढ़ाए जाने से छात्रों में तनाव नहीं पैदा होता है?
  • क्या पूरी शिक्षा व्यवस्था व शिक्षण प्रणाली में बदलाव किए बिना छात्रों को राहत मिलेगी?
  • गुणवत्ता युक्त शिक्षा देने की व्यवस्था आज तक सरकारी स्कूल और कॉलेजों में क्यों नहीं हो सकी है?
  • क्यों आज भी सैकड़ों स्कूल और कॉलेज शिक्षकों और अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं?
  • क्यों छात्रों को परीक्षा के लिए तैयार नहीं किया जाता है?
  • क्यों छात्रों को अपने पाठ्यक्रम को पूरा करने और विषय को समझने के लिए कोचिंग सेंटर्स की मदद लेनी पड़ती है?

आज भी सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में पढऩे वाले हाईस्कूल और इंटर के अधिकांश छात्र घबरा जाते हैं। इसकी बड़ी वजह शिक्षा व्यवस्था और यहां की शिक्षण प्रणाली में निहित है। अधिकांश सरकारी स्कूलों व कॉलेजों में पाठ्यक्रम को सही तरीके से पढ़ाया नहीं जाता है। आधी-अधूरी पढ़ाई की जाती है। शिक्षकों की पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण स्थितियां लगातार दयनीय हो जाती हैं।

छात्रों का मन लगातार चलने वाली कक्षाओं से उचट जाता

यही नहीं अधिकांश स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। बैठने से लेकर कक्षा की स्थिति तब खराब है। ऐसे वातावरण में छात्रों का मन लगातार चलने वाली कक्षाओं से उचट जाता है। इसका सीधा असर उनकी विषय की समझने की क्षमता पर पड़ता है। इसके अलावा शिक्षण प्रणाली भी बाबा आदम के जमाने की चली आ रही है। एकरसता के कारण भी छात्रों को विषय को समझने में कठिनाई पैदा होती है।

लिहाजा वे खुद को परीक्षा के लिए तैयार नहीं कर पाते हैं और उनके मस्तिष्क में इसका डर और तनाव उत्पन्न हो जाता है। वे विषय को समझने के लिए कोचिंग संस्थानों की शरण लेते हैं लेकिन जब तनाव चरम पर पहुंच जाता है तो वे गलत कदम भी उठा लेते हैं।

जाहिर है, केंद्र सरकार को छात्रों के तनाव को समझने के लिए इसके मूल कारण पर सोचना होगा और इसका निदान करना होगा। यदि सरकार छात्रों को वाकई परीक्षा के तनाव से मुक्त करना चाहती है तो उसे शिक्षा व्यवस्था और शिक्षण प्रणाली दोनों में आमूल बदलाव करना होगा। यदि ऐसा किया गया तो छात्र न केवल खुद परीक्षा के लिए तैयार रहेंगे बल्कि बेहतर अंकों के साथ परीक्षा में पास भी कर सकेंगे।

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