संपादक की कलम से: ईको टूरिज्म की चुनौतियां
Sandesh Wahak Digital Desk: उत्तर प्रदेश सरकार धार्मिक पर्यटन की तर्ज पर भले ही ईको टूरिज्म बढ़ाने पर लगातार फोकस कर रही हो हालात में खास सुधार होता नहीं नजर आ रहा है। कई जिलों में नदी, पोखर और तालाबों पर न केवल अवैध अतिक्रमण जारी है बल्कि वन क्षेत्रों को भी नष्ट करने की प्रक्रिया बदस्तूर चल रही है। यही नहीं प्रदेश में हर साल कई करोड़ वृक्षों का रोपण करने के बाद भी हरियाली में खास इजाफा नहीं हुआ है। जंगल के किनारे बसे गांवों में वन्य जीवों के हमले तेज हो चुके हैं।
सवाल यह है कि :-
- इन सबके लिए कौन जिम्मेदार है?
- क्या ऐसे ईको टूरिज्म का विकास संभव है?
- प्राकृतिक जल स्रोतों पर कौन लोग कब्जा कर रहे हैं?
- अवैध कब्जाधारकों को कौन प्रश्रय दे रहा है और इसे समय रहते क्यों नहीं रोका जा रहा है?
- वृक्षारोपण अभियान प्रदेश की हरियाली को क्यों नहीं बढ़ा पा रहा है?
- हर साल भारी-भरकम धनराशि खर्च करने के बाद भी परिणाम निराशाजनक क्यों हैं?
- क्या अनियोजित विकास ने स्थितियों को बिगाड़ दिया है?
- क्या मजबूत इच्छाशक्ति के बिना प्रदेश में प्रकृति और वन्य जीवों का संरक्षण किया जा सकता है?
पिछले सात साल से उत्तर प्रदेश सरकार पर्यटन क्षेत्रों के विकास पर लगातार काम कर रही है। इसके तहत शुरू में धार्मिक और पौराणिक महत्व के स्थलों का कायाकल्प किया गया लेकिन अब धार्मिक के साथ ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने पर फोकस किया जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों की विविधता से भरपूर प्रदेश में ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 2022 में उत्तर प्रदेश ईको टूरिज्म विकास बोर्ड का गठन भी किया है और प्राकृतिक क्षेत्रों के विकास के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च भी किए जा रहे हैं।
प्राकृतिक संसाधनों को अवैध तरीकों से नष्ट किया जा रहा
इसमें दो राय नहीं कि यदि उत्तर प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर क्षेत्रों का विकास किया जाए तो इसका लाभ न केवल स्थानीय लोगों को मिलेगा बल्कि प्रदेश एक बेहतर ईको टूरिज्म डेस्टिनेशन बनकर उभर सकता है। बावजूद इसके इस क्षेत्र में जिस तेजी से काम किया जाना चाहिए वैसा धरातल पर नहीं दिख रहा है। यही नहीं प्राकृतिक संसाधनों को अवैध तरीकों से नष्ट किया जा रहा है और इसको रोकने के लिए सरकार की ओर से कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है। यही वजह है कि कई जिलों में नदियों, तालाबों और पोखरों पर अवैध अतिक्रमण हो चुका है।
इसके कारण प्रदेश के कई प्राकृतिक जलस्रोत समाप्त हो चुके हैं और कुछ खत्म होने की कगार पर हैं। वन क्षेत्रों में पेड़ों की अवैध कटाई जारी है। लिहाजा इन वनों में रहने वाले वन्य जीव और वहां बसे ग्रामीणों के बीच टकराव हो रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि हर साल कई करोड़ वृक्ष लगाए जाते हैं लेकिन देखरेख के अभाव में सूख जाते हैं और प्रदेश की हरियाली बढ़ा पाने में असमर्थ हैं। जाहिर है यदि सरकार ईको टूरिज्म को बढ़ाना देना चाहती है तो उसे सबसे पहले इन चुनौतियों से निपटना होगा और प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन करना होगा।