संपादक की कलम से: सरकार को आईना

Sandesh Wahak Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में साइकिल ट्रैक बनाने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर बेहद तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि यहां सरकार लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पेयजल और मकान तक मुहैया नहीं करा पा रही है और आप साइकिल टै्रक के सपने देख रहे हैं। ऐसे में हमें अपनी बुनियादी जरूरतों की प्राथमिकता तय करनी होंगी।

सवाल यह है कि:

  • सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से क्या केंद्र और राज्य सरकारें सबक सीखेंगी?
  • क्या विकास का राग अलापने वाली सरकारें हाशिए में खड़े लोगों की सुध लेंगी?
  • आखिर कब तक गरीबों को छला जाता रहेगा?
  • झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के दिन बहुर क्यों नहीं पाए?
  • आखिर आजादी के 75 साल बाद भी सरकारें सभी लोगों को स्वच्छ पेयजल क्यों नहीं मुहैया करा सकी हैं?
  • वोट लेने के लिए तमाम तरह के लुभावने वादे करने वाले सियासी दल सुप्रीम कोर्ट की इस बात को गांठ बांधकर कुछ करेंगे या सिर्फ येन-केन-प्रकारेण सत्तासुख भोगने में ही लगे रहेंगे?

भारत में आज भी एक बड़ी आबादी रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी सुविधाओं से जूझ रही है। देश में 50 फीसदी से कम आबादी के पास ही पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध है। वहीं 1.96 करोड़ आवासों में प्रदूषित पानी पहुंच रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में प्रदूषित पानी से 19 राज्य के करोड़़ों लोग प्रभावित हो रहे हैं। आर्सेनिक युक्त पानी से अकेले पश्चिम बंगाल में 1.5 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं। जहां तक झुग्गी में रहने वालों की बात है तो उन्हें अधिकांशत: प्रदूषित पानी से काम चलाना पड़ रहा है।

झुग्गियों में रहते हैं लाखों की संख्या में लोग

भारत में दस लाख से अधिक झुग्गियां हैं और इसमें कम से कम 65 लाख लोग निवास करते हैं। अकेले दिल्ली में 675 झुग्गी-झोपड़ियों हैं। जिनमें लगभग 15.5 लाख लोग रह रहे हैं। ये बेहद खराब स्थितियों में जीवनयापन करने को मजबूर हैं। हालांकि सरकार ने हर घर नल योजना शुरू की है लेकिन अभी वह सबको शुद्ध पानी उपलब्ध कराने में सफल नहीं हो सकी है। वहीं करीब 12.9 करोड़ भारतीय अत्यधिक गरीबी में जीवन बसर कर रहे हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, इन भारतीयों की प्रतिदिन की आमदनी 181 रुपये से भी कम है। जनसंख्या वृद्धि के चलते 1990 की तुलना में 2024 में अधिक भारतीय गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं।

साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों का सच से सामना करा दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि हमें प्राथमिकता तय करनी होगी ताकि बुनियादी सुविधाओं से वंचित लोगों के जीवनस्तर को सुधारा जा सके। इसमें दो राय नहीं कि बदतर स्थिति में जीवनयापन करने के कारण गरीब तमाम तरह के रोगों से प्रभावित होते हैं और इस पर हर साल सरकार के अरबों रुपये खर्च होते हैं। जाहिर है, सरकार को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से सबक लेने की जरूरत है अन्यथा हालात और भी बदतर होंगे।

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