संपादक की कलम से: कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के मायने

भाजपा के हाथ से एक और राज्य निकल गया। कर्नाटक में सत्ता विरोधी लहर और हर पांच साल में सरकार बदलने की परिपाटी बरकरार रही।

Sandesh Wahak Digital Desk: भाजपा के हाथ से एक और राज्य निकल गया। कर्नाटक में सत्ता विरोधी लहर और हर पांच साल में सरकार बदलने की परिपाटी बरकरार रही। कांग्रेस ने यहां जीत का परचम फहराया है। भाजपा ने अंतिम नतीजों के पहले अपनी हार स्वीकार कर ली है।

सवाल यह है कि…

  • कांग्रेस की जीत का निकट भविष्य की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?
  • क्या गैर कांग्रेसी गठबंधन की तमाम कोशिशों पर नकारात्मक असर पड़ेगा?
  • क्या लोकसभा और पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी इसका असर दिखेगा?
  • भाजपा की हार के मुख्य कारण क्या रहे हैं?
  • क्या इस हार से दक्षिण में विस्तार की भाजपा की नीति को झटका लगा है?
  • क्या कांग्रेस को देश स्तर पर सियासी संजीवनी मिली है?

येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई नहीं डाल सके प्रभाव

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और वरिष्ठ नेता येदियुरप्पा

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार के कई कारण है। सबसे बड़ा कारण सत्ता विरोधी रूझान और हर पांच साल में सरकार परिवर्तन का रिवाज कायम रखने की प्रवृत्ति रही। भाजपा सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं खोज पायी। वहीं कांग्रेस ने भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बनाया और भाजपा के लिए यह मुद्दा चुनाव में गले की फांस बना रहा। कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं था। येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को भाजपा ने मुख्यमंत्री जरूर बनाया लेकिन वे कोई खास प्रभाव नहीं डाल सके।

सियासी समीकरण भी नहीं साध सकी भाजपा

कर्नाटक
कांग्रेसी नेता सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार

दूसरी ओर कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार व सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे। कर्नाटक में भाजपा सियासी समीकरण भी नहीं साध सकी। वह न अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को जोड़े रख सकी न दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय में पकड़ मजबूत कर सकी जबकि कांग्रेस मुस्लिमों से लेकर दलित व ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखने के साथ लिंगायत समुदाय के वोट बैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही। पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार व पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी को टिकट न देना भी भाजपा को महंगा पड़ा। इन सबसे इतर इस चुनाव परिणाम के कई अन्य सियासी मायने भी है। कांग्रेस की जीत से कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। इसका असर अन्य चुनावों पर निश्चित रूप से पड़ेगा।

क्षेत्रीय पार्टियों को लगेगा झटका

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वहीं लोकसभा में ममता बनर्जी, नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों का बिना कांग्रेस के गठबंधन की कोशिशों को भी झटका लगेगा। अब ये दल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दरकिनार करने की स्थिति में नहीं होंगे। इससे गैरकांग्रेसी मोर्चे के गठन और विपक्षी एकता की कवायद पर पानी फिर सकता है क्योंकि कांग्रेस विपक्षी एकता का नेतृत्व खुद करना चाहेगी।

वहीं लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक में दोबारा सत्ता में आकर दक्षिण में पार्टी का विस्तार करने की भाजपा की इच्छा पर भी तुषारापात हो गया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में होने वाले चुनावों और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इस जीत को कैसे भुनाती है।

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