संपादक की कलम से : अंतरिक्ष में इसरो की उपलब्धि के अर्थ
Sandesh Wahak Digital Desk : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक और उपलब्धि हासिल की है। इसने न केवल सिंगापुर सरकार से हुए समझौते के तहत उसके सात उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किया बल्कि प्रक्षेपण के दौरान राकेट के बचे हिस्से यानी कचरे को निपटाने के लिए एक बड़ा प्रयोग भी किया। अंतरिक्ष एजेंसी चौथे चरण में राकेट के बचे हिस्से को निचली कक्षा में लाने में सफल रही।
सवाल यह है कि :-
- इसरो की इस उपलब्धि के मायने क्या हैं?
- क्या अब अंतरिक्ष में फैले कचरे का निपटान संभव हो सकेगा?
- क्या इन उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण से विश्व के अंतरिक्ष बाजार में इसरो की साख और बढ़ेगी?
- क्या अन्य देश भी भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के साथ अपने उपग्रहों को लॉन्च कराने के लिए करार करेंगे?
- क्या इसरो की सफलता से देश में अंतरिक्ष विज्ञान का दायरा और बढ़ेगा?
- क्या देश की अर्थव्यवस्था पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा?
पिछले एक दशक से इसरो विदेशी उपग्रहों को लॉन्च करने का काम कर रहा है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में नंबर वन अमेरिका भी अपने उपग्रहों को इसरो के जरिए प्रक्षेपित करा रहा है। छोटे देश भी भारत की अंतरिक्ष एजेंसी पर विश्वास जता रहे हैं। सिंगापुर के उपग्रहों को छोड़ने का करार इसकी पुष्टि करता है। इसके पीछे कई वजहें हैं। सबसे बड़ी वजह भारतीय एजेंसी द्वारा कम खर्च पर उपग्रहों को लॉन्च किया जाता है।
वहीं एजेंसी के सफलता की गारंटी अन्य देशों की अपेक्षा कहीं अधिक है। लिहाजा अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए छोटे देश उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए इसरो की ओर देखते हैं। इससे भारत और इसरो दोनों को फायदा हो रहा है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि विदेशों से प्राप्त धन से नए अनुसंधान के लिए पैसे की कमी नहीं होती है दूसरे विदेशी मुद्रा के आने से देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ता है।
उपग्रहों को लॉन्च करते वक्त इसरो ने किया नया प्रयोग
यही नहीं इसरो की सफलता से बच्चों में अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति ललक भी पैदा हो रही है जो भविष्य की दृष्टि से बेहद उपयोगी साबित होगी। इन उपग्रहों को लॉन्च करते समय इसरो ने एक नया प्रयोग भी सफलतापूर्वक संपादित किया है। इसके जरिए एजेंसी उपग्रहों को अंतरिक्ष तक पहुंचाने वाले रॉकेट के बचे आखिरी अंश को पृथ्वी की निचली कक्षा तक वापस लाने में सफल रही। इससे बचा अंश जिसे अंतरिक्ष का कचरा कहा जाता है, वह कम समय में नष्ट हो जाएगा क्योंकि निचली कक्षा में मलबा बेहद तेजी से घूमता है और फिर नष्ट हो जाता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस कचरे को नष्ट होने में दो माह का वक्त लगेगा। आज जब अंतरिक्ष में फैला कचरा दशकों तक वहीं घूमता रहता है और चिंता का विषय है, इसरो की यह उपलब्धि बेहद खास है। यह अन्य देशों के लिए प्रेरणा का भी काम करेगी। कुल मिलाकर इसरो की यह उपलब्धि देश के लिए न केवल गौरवपूर्ण है बल्कि समस्या के निस्तारण की एक सफल प्रयोग की बानगी भी है।
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