संपादक की कलम से : भीड़ की हिंसा और नाकाम सरकारें
Sandesh Wahak Digital Desk : हरियाणा के नूंह में भीड़ ने जमकर हिंसा की। उपद्रवियों ने न केवल अस्पतालों में तोड़फोड़ की बल्कि कई दर्जन वाहनों को आग के हवाले कर दिया। हिंसा को नियंत्रित करने पहुंची पुलिस पर पथराव किया, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। हिंसा गुरुग्राम तक पहुंची। अब तक हुई हिंसा में कम से कम पांच लोग मारे जा चुके हैं। जिसमें होमगार्ड के दो जवान भी शामिल हैं।
सवाल यह है कि :-
- भीड़ को अराजक होने से रोकने में देश के विभिन्न राज्यों की सरकारें नाकाम क्यों हैं?
- भीड़ द्वारा लाखों करोड़ के सरकारी धन के नुकसान की भरपाई कौन करेगा?
- आम जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों के नुकसान का जिम्मेदार कौन है?
- आखिर स्थानीय खुफिया तंत्र को संभावित बवाल की भनक क्यों नहीं लगती है?
- क्या किसी को भी कानून को अपने हाथ में लेने दिया जा सकता है?
- राज्य सरकारें भीड़ की अराजकता को रोकने के लिए कोई फुल प्रूफ प्लान क्यों नहीं बनाती?
- भीड़ द्वारा की जा रही लोगों की हत्याओं की जिम्मेदारी किसकी है?
- क्या उपद्रवियों से सख्ती से नहीं निपटने के कारण हालात बिगड़ रहे हैं?
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब देश के किसी राज्य में भीड़ अराजक हुई है। अधिक दिन नहीं हुए जब बिहार से लेकर राजस्थान और बंगाल से लेकर दिल्ली तक में भीड़ ने जमकर हिंसा की। असम अभी भी जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। कुल मिलाकर देश के अन्य राज्यों में भीड़ के उग्र होने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। कानून व्यवस्था की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैं।
भीड़ की हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त
पिछले दो-तीन वर्षों में उग्र भीड़ द्वारा सरकारी और निजी संपत्तियों के नुकसान का अनुमान लगाएं तो यह लाखों करोड़ बैठेगा। वहीं भीड़ की हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट तक राज्य सरकारों को फटकार लगा चुके हैं लेकिन उस पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। यह स्थिति तब है जब राज्य में कानून व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी सूबे की सरकारों के पास है और इसके लिए उनके पास पर्याप्त पुलिस तंत्र और संसाधन है। स्थानीय खुफिया विभाग है।
हैरानी की बात यह है कि लगातार हो रही हिंसक घटनाओं के बावजूद राज्य सरकारों ने भीड़ की अराजकता से निपटने का कोई फुल प्रूफ प्लान तक तैयार नहीं किया। न ही इससे निपटने के लिए पुलिस तंत्र को प्रशिक्षित किया गया। लिहाजा स्थितियां बद से बदतर होती जा रही हैं। केंद्र सरकार भी इसे लेकर कोई ठोस प्लान या निर्देश राज्यों को जारी करने में असफल रही है। यह स्थिति बेहद खतरनाक है।
यदि राज्य सरकारें भीड़ की हिंसा पर नियंत्रण लगाना चाहती है तो उन्हें न केवल अपने पुलिस तंत्र को भीड़ से निपटने के गुर सिखाने होंगे बल्कि अपने खुफिया तंत्र को भी सक्रिय करना होगा ताकि समय रहते पुलिस प्रशासन को इसकी जानकारी मिल सके। दूसरे उपद्रवियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी और त्वरित कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि वह अन्य के लिए सबक बन सके।
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