संपादक की कलम से: नए संसद भवन के निहितार्थ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस नया संसद भवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया। साथ ही लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास सेंगोल यानी राजदंड को पूरे विधि-विधान से स्थापित किया।
Sandesh Wahak Digital Desk: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस नया संसद भवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया। साथ ही लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास सेंगोल यानी राजदंड को पूरे विधि-विधान से स्थापित किया। समारोह के दौरान 75 रुपये का एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट भी जारी किया गया। इसके साथ पुराना संसद भवन अतीत बन गया।
सवाल यह है कि…
- नए संसद भवन की जरूरत क्यों पड़ी?
- सेंगोल की स्थापना के पीछे सरकार की मंशा क्या है?
- 19 विपक्षी दलों के विरोध व बहिष्कार को नजरअंदाज क्यों किया गया?
- क्या केंद्र की भाजपा सरकार ने एक बार फिर प्रतीकों के जरिए देशवासियों को बड़ा संदेश देने की कोशिश की है?
- क्या इसका विरोध करने वालों दलों को राज्यों में होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है?
- क्या राजदंड के जरिए दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु को साधने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है?
एक दशक पहले की गई थी नए संसद भवन के निर्माण की बात
नए संसद भवन के निर्माण की बात एक दशक पहले शुरू हुई थी लेकिन इसको मोदी सरकार ने साकार किया। 1927 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए पुराने संसद भवन में संयुक्त बैठकों के दौरान जगह की कमी, अत्याधुनिक तकनीक से लैस करने में आ रही दिक्कतें और भविष्य में सांसदों की संख्या में वृद्धि की संभावना को देखते हुए नए भवन के निर्माण का निर्णय लिया गया।
नए भवन में लोकसभा में 888 व राज्यसभा में 384 और संयुक्त बैठक होने पर लोकसभा कक्ष में 1,280 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की गई है। 10 दिसंबर, 2020 को इस भवन की नींव रखी गई और तीन साल से कम समय में यह बनकर तैयार हुआ।
विविधिता में एकता का प्रतिबिंब है नया संसद भवन
नया संसद भवन विविधिता में एकता का प्रतिबिंब है। कई राज्यों के श्रमिकों और वास्तुशिल्पियों ने इसमें अपना योगदान दिया है। नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने की मांग और सेंगोल की स्थापना को लेकर कांग्रेस समेत कई दलों ने समारोह का बहिष्कार किया। संसद भवन में सेंगोल की स्थापना खास रहा। सेंगोल दक्षिण भारत के महान चोल राजाओं का राजदंड था और इसे सत्ता हस्तांतरण के दौरान पुरोहित राजा को सौंपता था। लार्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में इसे सौंपा था और इसके बाद इसे इलाहाबाद के म्यूजियम में रख दिया गया। मोदी सरकार ने इसे संसद में स्थापित किया।
मोदी ने विरोधियों को एक बार फिर किया चित्त
दरअसल, चोलों के शासन काल में स्थानीय स्वशासन की फलती-फूलती लोकतांत्रिक परंपरा थी और इसकी कड़ी प्राचीन भारत से जुड़ती है। मोदी प्रतीकों से अपने सियासी विरोधियों को चित करते रहे हैं और सेंगोल के जरिए उन्होंने न केवल अपने समर्थकों को संदेश दिया बल्कि दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु को साधने का दांव भी चल दिया है। यही नहीं नए संसद भवन के जरिए वे भारतीयों में राष्ट्रवाद और आत्मनिर्भर भारत का संदेश पहुंचाते दिखे। अब यह वक्त बताएगा कि नए संसद भवन और सेंगोल का विरोध करने का खामियाजा विरोधी दलों को भुगतना पड़ेगा या नहीं।
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