संपादक की कलम से: जिनपिंग से वार्ता के निहितार्थ

Sandesh Wahak Digital Desk : चीन से तनाव के बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच ब्रिक्स सम्मेलन से इतर बातचीत हुई। भारत ने चीन के सामने अपना रुख साफ कर दिया कि संबंध तभी सामान्य होंगे जब वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव कम होगा। दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने तनाव को कम करने पर सहमति जताई।

सवाल यह है कि :

  1. क्या वास्तव में चीन अपने वादे के मुताबिक सीमा पर तनाव कम करने का कोई प्रयास करेगा?
  2. क्या चीन, सीमा पर तैनात अपने हजारों सैनिकों को यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देगा?
  3. क्या वार्ता के जरिए शी जिनपिंग दुनिया के सामने खुद को शांति प्रिय होने का ढोंग रच रहे हैं?
  4. क्या चीन के इतिहास को देखते हुए उस पर भरोसा किया जा सकता है?
  5. क्या आर्थिक रूप से कमजोर हो चुके चीन को फिर से खड़ा करने के लिए जिनपिंग भारतीय बाजार में अपनी घुसपैठ बढ़ाने के लिए यह भरोसा दे रहे हैं?
  6. क्या भारत और अमेरिका की बढ़ती दोस्ती को लेकर चीन सशंकित है?

चीन और भारत के रिश्ते कभी मधुर नहीं रहे। 1962 में चीन ने पंचशील के समझौते को तोड़कर भारतीय सीमा का अतिक्रमण किया और 38 हजार वर्ग किमी जमीन कब्जा लिया। चीन का यह आक्रमण पं. जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में हुआ था। इसके बाद से ही चीन-भारत के बीच शत्रुता की खाई चौड़ी होती गई। शी जिनपिंग ने गद्दी संभालते ही अपनी विस्तारवादी नीतियों को रफ्तार देना शुरू किया। 2020 में चीन ने गलवान घाटी की भारतीय सीमा में न केवल घुसने की हिमाकत की बल्कि कब्जा करने की भी कोशिश की। इसके कारण दोनों देशों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ।

केवल कुछ क्षेत्रों से दोनों सेनाएं वापस हुई

इस हिंसक संघर्ष के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच चुका है। सीमा पर दोनों देशों की सेनाएं तैनात हैं और एक छोटी सी घटना युद्ध का कारण बन सकती है। हालांकि इस दौरान दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर कई बैठकें हुईं लेकिन कोई खास रिजल्ट नहीं निकला। केवल कुछ क्षेत्रों से दोनों सेनाएं वापस हुई हैं।

ऐसे में मोदी और जिनपिंग के बीच वार्ता से यह उम्मीद जताई जाने लगी है कि जल्द ही सीमा पर तनाव कम होगा लेकिन शी जिनपिंग ने यह आश्वासन केवल इसलिए दिया है क्योंकि भारतीय बाजार से चीन का सामान नदारद होने लगा है। इसका सीधा असर उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। कोरोना महामारी और अन्य देशों द्वारा चीन का कर्जा वापस नहीं मिलने के कारण भी चीन की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो चुकी है।

इसके अलावा हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी नीतियों का अमेरिका और भारत समेत तमाम देश विरोध कर रहे हैं। इससे भी चीन परेशान है और उसने दुनिया को दिखाने के लिए शांति का चोला पहन लिया है। इसके बावजूद चीन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि वह चीन को लेकर किसी प्रकार की असावधानी से बचे अन्यथा स्थितियां बिगड़ सकती हैं।

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