संपादक की कमल से: मतदाताओं की उदासीनता
Sandesh Wahak Digital Desk: लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है। एक दिन बाद दूसरे चरण का मतदान होना है लेकिन मताधिकार को लेकर मतदाताओं में कोई खास उत्साह नहीं दिख रहा है। पहले चरण के चुनाव में करीब 68 प्रतिशत मतदान रिकॉर्ड किया गया है। मतदाताओं की उदासीनता को देखते हुए जहां सियासी दलों की चिंताएं बढ़ गईं हैं वहीं चुनाव आयोग के सामने मतदान प्रतिशत बढ़ाने की चुनौती है।
सवाल यह है कि :
- देश में अपनी सरकार को चुनने में लोग बढ़-चढक़र भाग क्यों नहीं ले रहे हैं?
- आजादी के 75 साल बाद भी देश के नागरिक राजनीतिक रूप से उदासीन क्यों हैं?
- मतदान के प्रति जागरूकता अभियानों और सियासी दलों की अपील बेअसर क्यों हो रही है?
- क्या यह प्रवृत्ति देश में मजबूत लोकतंत्र की राह में रोड़ा नहीं बन रही है?
- क्या सरकार चुनने में जनता की भागीदारी बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग को नयी रणनीति बनाने की जरूरत है?
किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव लोकतंत्र का महापर्व होता है। इसमें भाग लेकर जनता अपनी सरकार का चयन करती है। आजादी के बाद भारत में भी लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया गया। हर पांच साल में यहां लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए जाते हैं और बहुमत प्राप्त दल सरकार बनाता है। इसके अलावा अन्य दल विपक्ष की भूमिका निभाते हैं। इस प्रणाली में एक सशक्त विपक्ष जरूरी होता है ताकि सत्तारूढ़ दल मनमाने ढंग से निर्णय न ले सके।
जनता आज भी राजनीतिक रूप से पूरी तरह जागरूक नहीं
इस प्रक्रिया को संपन्न करने के लिए लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं लेकिन आज भी भारत में औसतन सत्तर फीसदी लोग भी अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। चुनावों के दौरान इसमें उतार-चढ़ाव दिखाई पड़ता है। सच यह है कि देश की जनता आज भी राजनीतिक रूप से पूरी तरह जागरूक नहीं है। इसके कारण वोट की कीमत को नहीं समझना है।
हालांकि चुनाव आयोग, गैरसरकारी संस्थाएं और सियासी दल मताधिकार का प्रयोग करने के लिए चुनाव के दौरान जागरूकता अभियान चलाते हैं लेकिन इसका कोई खास असर नहीं दिखता है। मतदान प्रतिशत अभी भी तेजी से नहीं बढ़ पा रहा है। हालांकि चुनाव में कम मतदान के लिए कई अन्य कारक मसलन मौसम, दूसरे राज्यों में नौकरी करना और उदासीनता आदि भी जिम्मेदार होते हैं।
मध्यम वर्ग के तमाम लोग मतदान दिवस को छुट्टी की तरह मनाते हैं और बूथ में जाकर मतदान करने से बचते हैं। यह प्रवृत्ति बेहद घातक है क्योंकि इससे सशक्त लोकतंत्र की परिकल्पना कमजोर होती है। कई बार जनता के एक वर्ग में सियासी दलों की रणनीति और कार्यशैली के कारण भी उदासीनता दिखाई पड़ती है। जाहिर है, अधिक से अधिक लोग मतदान में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें इसके लिए चुनाव आयोग, सियासी दलों और गैर सरकारी संस्थाओं को नयी रणनीति तैयार करनी होगी। उन्हें न केवल मत के महत्व को बताना होगा बल्कि इसके फायदे भी बताने होंगे।
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