संपादकीय: सड़क हादसों पर अंकुश कब?
उत्तर प्रदेश में सडक़ हादसों (Road Accidents) का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके कारण होने वाली मौतों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है।
संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। उत्तर प्रदेश में सड़क हादसों (Road Accidents) का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके कारण होने वाली मौतों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। सरकार की तमाम कवायदों के बावजूद हालात पर नियंत्रण नहीं लग सका है। प्रदेश में बीस जिले ऐसे हैं जो सडक़ दुर्घटनाओं के लिए बेहद संवेदनशील हैं। यहां प्रदेश में होने वाली कुल मौतों का 43 प्रतिशत रिकॉर्ड किया गया है।
सवाल यह है कि…
- सडक़ हादसों पर अंकुश क्यों नहीं लग रहा है?
- क्या यातायात के नियमों का उल्लंघन, नशे में वाहन का संचालन और जर्जर सडक़ें हादसों की बड़ी वजह हैं?
- सडक़ सुरक्षा जागरूकता अभियान का असर क्यों नहीं पड़ रहा है?
- क्या लचर ट्रैफिक सिस्टम ने हालात को बदतर बना दिया है?
- लोगों के जीवन को बचाने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं?
- क्या सडक़ हादसे प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर नहीं डाल रहे हैं?
- मौत के बढ़ते आंकड़ों पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता और निर्देशों को दरकिनार क्यों कर दिया गया है?
प्रदेश में बढ़ते सड़क हादसों (Road Accidents) के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। मसलन, जर्जर और गड्ढा युक्त सडक़ें हादसों का सबब बन रही हैं। सरकार के तमाम दावों के बावजूद आज तक प्रदेश की सडक़ें गड्ढा मुक्त नहीं हो सकी हैं। राजधानी लखनऊ तक की कई सडक़ें जर्जर और गड्ढों से भरी पड़ी हैं। वहीं लोग यातायात नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। वे न केवल रेडलाइट जंप करते हैं बल्कि जीवन की सुरक्षा के लिए जरूरी हेलमेट और सीट बेल्ट तक का प्रयोग करने से कतराते हैं। अधिकांश कारों में सुरक्षा के जरूरी उपकरण नहीं हैं। मोबाइल पर बात करते और शराब पीकर वाहन चलाने वाले भी हादसों को न्योता देते हैं।
अधिकांश शहरों में आज भी सिग्नल सिस्टम केवल शो पीस
दूसरी ओर प्रदेश का यातायात सिस्टम पूरी तरह लचर है। कुछ शहरों को छोड़ दें तो अधिकांश शहरों में आज भी सिग्नल सिस्टम केवल शो पीस बनकर रह गए हैं। चौराहों पर टै्रफिक पुलिस नदारद रहती है। इसका परिणाम यह है कि देश में सबसे अधिक 20 हजार लोग उत्तर प्रदेश में प्रतिवर्ष सडक़ हादसों में जान गंवाते हैं जबकि पूरे भारत में यह संख्या डेढ़ लाख है। यूपी में होने वाली दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या अमेरिका जैसे देश से कुछ कम है।
सडक़ों की बनावट और गुणवत्ता पर करना है काम
सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित कमेटी ऑफ रोड सेफ्टी के चेयरमैन (Road Safety Chairman) सेवानिवृत्त जस्टिस अभय मोहन सप्रे भी सडक़ दुर्घटनाओं (Road Accidents) को कड़ाई से रोकने का निर्देश दे चुके हैं। बावजूद इसके हालात जस के तस हैं। सडक़ दुर्घटनाओं में जा रही लोगों की जान से एक ओर संबंधित परिवार प्रभावित होता है तो दूसरी ओर प्रदेश सरकार के खजाने पर भी इसका विपरीत असर पड़ता है। यदि सरकार वाकई सडक़ दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाना चाहती है तो उसे न केवल सडक़ों की बनावट और गुणवत्ता को सुधारना होगा बल्कि ट्रैफिक सिस्टम को भी दुरुस्त करना होगा। इसके अलावा लोगों को सडक़ सुरक्षा के प्रति सतत अभियान चलाकर जागरूक करना होगा।
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