संपादकीय: चिकित्सकों को चेतावनी के मायने
केंद्र सरकार ने एक बार फिर अस्पतालों में चल रही गड़बडिय़ों और आदेशों को दरकिनार करने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई है।
Sandesh Wahak Digital Desk: केंद्र सरकार ने एक बार फिर अस्पतालों में चल रही गड़बडिय़ों और आदेशों को दरकिनार करने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई है। सरकार ने कहा है कि आदेश के बावजूद केंद्र संचालित स्वास्थ्य सेंटरों व अस्पतालों में तैनात चिकित्सक जेनेरिक दवाइयां नहीं लिख रहे हैं। ब्रांडेड दवाएं लिखने के कारण गरीबों की जेबें ढीली हो रही हैं। मेडिकल रिप्रजेंटेटिव भी डॉक्टरों के चेंबर में बैठे रहते हैं व कुछ सुविधाएं देकर कंपनी की दवाएं लिखने के लिए प्रेरित करते हैं। इस तरह सरकार की आम आदमी को बेहतर चिकित्सा सुविधा और सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने की मंशा पर पानी फिर रहा है। लिहाजा सरकार ने आदेश जारी किया है कि जेनेरिक की जगह ब्रांडेड दवाइयां लिखने वाले चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
सवाल यह है कि…
- सरकार के आदेशों का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है?
- जेनेरिक दवाओं की जगह ब्रांडेंड कंपनियों की दवाएं क्यों लिखी जा रही हैं?
- चिकित्सक लोगों की सेवा करने की शपथ क्यों भूल गए हैं?
- जेनेरिक दवाओं को लेकर लोगों के बीच कौन भ्रम फैला रहा है?
- क्या स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है?
- क्या कार्रवाई करने के आदेश भर से व्यवस्थाएं बदल जाएंगी?
जेनेरिक दवाओं के खिलाफ हो रहा है दुष्प्रचार
चिकित्सकों द्वारा जेनेरिक की जगह ब्रांडेड दवाएं लिखने और अस्पतालों में मेडिकल रिप्रजेंटेटिव का जमावड़ा केवल केंद्र सरकार द्वारा संचालित सेंटरों में ही नहीं बल्कि अधिकांश सरकारी अस्पतालों में जारी है। चिकित्सकों और संस्थान प्रमुखों पर सरकार के आदेशों का कोई असर नहीं पड़ता है। हैरानी की बात यह है कि तमाम चिकित्सक और कंपनियां प्रायोजित रूप से जेनेरिक दवाओं के खिलाफ दुष्प्रचार करते रहते हैं और मरीजों को ब्रांडेड दवाओं के सेवन की सलाह देते हैं।
टूर और गिफ्ट के चक्कर में फंस गए हैं चिकित्सक
दरअसल, दवा कंपनियों और चिकित्सकों का नेटवर्क ब्रांडेड दवाओं के कारोबार को मिलकर आगे बढ़ा रहा है। कंपनियां दवाओं का प्रचार-प्रसार करने के एवज में चिकित्सकों को न केवल आर्थिक लाभ पहुंचाती हैं बल्कि बड़े-बड़े विदेशी टूर के पैकेज और महंगे गिफ्ट तक देती हैं। ऐसे में सस्ती और उपयोगी जेनेरिक दवाएं केवल औषधि केंद्रों की शोभा बढ़ा रही हैं।
वहीं दूसरी ओर जहां जेनेरिक दवाएं लिखी भी जाती हैं वहां ये औषधि केंद्रों में उपलब्ध नहीं होती हैं। लिहाजा मरीज चिकित्सक से कहकर दूसरी यानी ब्रांडेड दवाएं लिखवाकर उसका सेवन करता है। मेडिकल रिप्रजेंटेटिव चिकित्सकों के चेंबर में घंटों बैठे रहते हैं इसके कारण मरीजों को डॉक्टर को दिखाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है।
भले ही सरकार ने जेनेरिक दवाएं नहीं लिखने पर कार्रवाई की चेतावनी जारी कर दी हो, इसका तब तक असर नहीं होगा जब तक दवा कंपनियों व चिकित्सकों के नेटवर्क को ध्वस्त नहीं किया जाएगा।
ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह अस्पताल के स्टोर रूम से लेकर औषधि केंद्रों तक जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करे व नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे, तभी सुधार होगा।