संपादक की कलम से: जनहित याचिका बनाम सुप्रीम कोर्ट
नये संसद भवन का राष्ट्रपति द्वारा उद्घाटन कराने की मांग वाली एक जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने न केवल खारिज कर दिया बल्कि याचिकाकर्ता को फटकार भी लगायी।
Sandesh Wahak Digital Desk: नये संसद भवन का राष्ट्रपति द्वारा उद्घाटन कराने की मांग वाली एक जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने न केवल खारिज कर दिया बल्कि याचिकाकर्ता को फटकार भी लगायी। शीर्ष अदालत ने पूछा कि इसमें जनहित का कौन सा मुद्दा है और यदि दोबारा ऐसी याचिका लगाई गई तो कोर्ट संबंधित व्यक्ति के खिलाफ जुर्माना लगाएगा।
सवाल यह है कि…
- क्या जनहित की आड़ में सियासी हितों की पूर्ति करने की कोशिश की जा रही है?
- जब लाखों केस लंबित पड़े हों तो क्या शीर्ष अदालत का बहुमूल्य समय बर्बाद किया जाना चाहिए?
- क्या केवल सुर्खियां बटोरने के लिए इस प्रकार की याचिकाएं लगाई जाती हैं?
- सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की तमाम हिदायतों और फटकार के बावजूद ऐसी याचिकाओं का चलन क्यों बढ़ता जा रहा है?
- क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट ऐसी याचिकाओं पर नियंत्रण लगाने के लिए कोई ठोस निर्णय या निर्देश जारी करे?
जनहित याचिका मामलों में चिंतित है सुप्रीम कोर्ट
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब जनहित के नाम पर अपनी सियासी रोटियां सेंकने के लिए याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। खुद सुप्रीम कोर्ट ऐसे याचिकाकर्ताओं की मंशा को समझता है और वह इस मामले में कई बार स्पष्ट हिदायत दे चुका है। पिछले साल जून में सुप्रीम कोर्ट ने ‘पुरी’ के जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) से जुड़ी एक याचिका को खारिज करते हुए अपनी चिंता जाहिर की थी। उस समय जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस हिमा कोहली (Justice BR Gavai and Justice Hima Kohli) की पीठ ने कहा था कि जनहित के लिए इस्तेमाल होने वाली कई याचिकाएं जनहित के खिलाफ होती हैं।
हाल के दिनों में जनहित याचिकाएं दायर किए जाने का चलन बढ़ा है। यह कानून का दुरुपयोग है। यही नहीं कोर्ट कुछ मामलों की सुनवाई के दौरान यह साफ कर चुका है कि वह अदालत को सियासत का अखाड़ा नहीं बनने देगा।
राष्ट्रपति से नए संसद भवन के उद्घाटन से संबंधित जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि वह जानता है कि याचिका क्यों दायर की गई, से साफ है कि विद्वान न्यायाधीशों की नजर से किसी की मंशा छिप नहीं पा रही है। बावजूद इसके सियासी दल अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए जनहित याचिकाओं और शीर्ष अदालत के बहुमूल्य समय का दुरुपयोग कर रहे हैं।
इसके पहले जब संसद भवन का निर्माण हो रहा था तब भी जनहित याचिका के जरिए इसके निर्माण में अड़ंगा लगाने की कोशिश की गयी थी लेकिन तब भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर विपक्ष को आईना दिखाया था।
सच यह है कि विरोध के लिए विरोध करने की सियासी प्रवृत्ति से न केवल देश का नुकसान हो रहा है बल्कि कोर्ट का समय भी जाया हो रहा है। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता है कि सभी जनहित याचिकाएं निरर्थक या सियासी होती हैं बावजूद इसके अब खुद सुप्रीम कोर्ट को जनहित को लेकर गाइडलाइन जारी करनी होगी अन्यथा सियासी दल इसका न केवल दुरुपयोग करते रहेंगे बल्कि कोर्ट का समय भी जाया करते रहेंगे।
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