संपादकीय: पलायन और स्वदेश वापसी
अफ्रीकी वर हिंसाग्रस्त देश सूडान से ऑपरेशन कावेरी के तहत भारतीयों का एक जत्था सकुशल भारत (स्वदेश) पहुंच गया।
Sandesh Wahak Digital Desk: अफ्रीकी वर हिंसाग्रस्त देश सूडान से ऑपरेशन कावेरी के तहत भारतीयों का एक जत्था सकुशल भारत (स्वदेश) पहुंच गया। हालांकि अभी ढाई हजार से अधिक भारतीयों को यहां से सुरक्षित निकालना बाकी है। जब ये नागरिक अपनी मातृभूमि (स्वदेश) पहुंचे तो उन्होंने फिर सूडान न जाने और अपने देश में रहकर कुछ करने की कसमें खाईं। इसके पहले भी भारत सरकार ने युद्धग्रस्त यूक्रेन और यमन में फंसे भारतीयों की सुरक्षित निकासी सुनिश्चित की थी। अपने नागरिकों को इन देशों से निकालने के लिए संबंधित देशों से मांग की गई थी, जिसे स्वीकार किया गया था।
सवाल यह है कि…
- युद्धग्रस्त देशों से भारतीयों की निकासी के मायने क्या हैं?
- भारत की बदली और सशक्त विदेश नीति की इसमें क्या भूमिका रही है?
- आखिर नागरिकों को सूडान और यमन जैसे गरीब देशों में नौकरी की तलाश में क्यों जाना पड़ता है?
- क्यों भारतीय छात्र यूक्रेन जैसे देशों में मेडिकल शिक्षा लेने को मजबूर होते हैं?
- क्या स्वदेश लौटे इन भारतीयों का दोबारा विदेश नहीं जाने का जज्बा आने वाले दिनों में भी बरकरार रहेगा?
- क्यों सरकार देश से होने वाले प्रतिभा पलायन को रोक नहीं पा रही है?
- क्या भारत लौटे नागरिकों के पुनर्वास की कोई व्यवस्था की गई है?
दुनिया के हर देश में हैं भारतीय
आबादी में दुनिया के नंबर एक देश बन चुके भारत की सबसे बड़ी त्रासदी प्रतिभा और श्रम शक्ति के पलायन को रोक न पाना है। दुनिया में शायद ही ऐसा कोई देश हो जहां भारतीयों की मौजूदगी न हो। भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने पिद्दी जैसे देशों में भी यहां के नागरिक नौकरी की तलाश में हर साल पहुंचते हैं। समृद्ध कनाडा, अमेरिका व आस्टे्रलिया में इनकी संख्या लाखों में पहुंच चुकी है। पश्चिमी यूरोप व एशिया के कई देशों में भी भारतीय रोजी-रोटी कमा रहे हैं।
देश में आज भी मूलभूत सुविधाओं की कमी तकलीफदेह
हैरानी की बात यह है कि गरीब मुल्कों में भी यहां के लोग पहुंच रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि आजादी के 75 साल बाद भी केंद्र और राज्य सरकारें अपने नागरिकों के रोजी-रोटी और शिक्षा समेत कई मूलभूत सुविधाओं की पर्याप्त व्यवस्था नहीं कर सकीं। सियासी दल येन-केन-प्रकारेण सत्ता हथियाने में जुटे रहे। चुनावी घोषणापत्र कागज के ढेर बनते रहे। यहां की सियासत विकास पर कम वोट बैंक, जातिवाद और ध्रुवीकरण पर अधिक चली और चल रही है। विकास की रफ्तार नहीं बढऩे के कारण कई राज्यों में रोजी-रोजगार के साधन विकसित नहीं हो सके। लिहाजा शिक्षित और अशिक्षत नौजवान उन देशों में भी जाने को बाध्य हुए जो बेहद गरीब हैं। विदेश से लौटे ये नागरिक भले ही दोबारा देश के बाहर न जाने की बात कर रहे हों लेकिन यदि उनके रोजी-रोजगार का इंतजाम नहीं हुआ तो ये फिर पलायन करेंगे।
स्वदेश में खोजना होगा पलायन का समाधान
जाहिर है केंद्र सरकार अपनी मजबूत विदेश नीति के चलते भले ही अपने नागरिकों को सुरक्षित निकाल लाई हो उनके रोजी-रोटी की व्यवस्था किए बिना उन्हें पलायन से रोक नहीं पाएगी। ऐसे में केंद्र व राज्य सरकारों को इस समस्या का समाधान खोजना होगा ताकि श्रमशक्ति और प्रतिभा का पलायन रुक सके।
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