संपादकीय: विपक्ष को सबक
लोक सभा चुनाव से पहले प्रदेश में हुए इस लिटमस टेस्ट में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया। वहीं विपक्ष अपनी हार का ठीकरा प्रशासन और ईवीएम पर फोड़ रहा है।
Sandesh Wahak Digital Desk: यूपी निकाय चुनाव में भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज की। पार्टी ने मेयर की सभी 17 सीटों पर कब्जा कर लिया है। नगर पालिका और नगर पंचायत चुनाव में भी विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी। यहां भाजपा ने सपा, बसपा व कांग्रेस को मीलों पीछे छोड़ते हुए दो तिहाई सीटों पर कब्जा कर लिया। लोक सभा चुनाव से पहले प्रदेश में हुए इस लिटमस टेस्ट में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया। वहीं विपक्ष अपनी हार का ठीकरा प्रशासन और ईवीएम पर फोड़ रहा है।
सवाल यह है कि…
- क्या भाजपा की रणनीति में विपक्ष फंस गया?
- क्या मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारने का दांव सफल रहा है?
- विपक्ष, भाजपा और सीएम योगी के ताबड़तोड़ प्रचार और रणनीति की काट क्यों नहीं खोज पाया?
- क्या कद्दावर नेताओं के प्रचार से दूर रहने और अंदरूनी खींचतान के कारण विपक्ष को हार का सामना करना पड़ा?
- क्या लगातार चुनाव हार रहे विपक्ष ने कोई सबक नहीं सीखा है?
प्रदेश में भाजपा की शानदार जीत के पीछे कई कारण हैं। खुद सीएम योगी ने निकाय चुनाव की बागडोर अपने हाथ में ली। दो चरणों में संपन्न हुए चुनाव के लिए उन्होंने प्रत्याशियों के समर्थन ने पूरे प्रदेश को मथ डाला। इस दौरान पचास से अधिक जनसभाओं को संबोधित किया। वहीं कार्यकर्ता, संगठन के पदाधिकारी और विधायक-मंत्रियों ने भी जमकर पसीना बहाया। माफियाओं पर शिकंजा, कानून का राज और विकास कार्य भाजपा की सभाओं में मूल मुद्दे रहे।
भाजपा ने मुस्लिमों को टिकट देकर खेला बड़ा दांव
इसके अलावा भाजपा ने मुस्लिमों को बड़ी संख्या में टिकट देकर नया सियासी दांव चला और नतीजे बताते हैं कि इसका फायदा उसे मिला। कई स्थानों पर मुस्लिम प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। इस रणनीति को जमीन पर उतारने के पहले भाजपा ने मुस्लिम सम्मेलन कराए और पसमांदा समाज में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की थी। विपक्ष इसकी काट खोज नहीं सका और उसके कोर वोटर छिटके।
घरों में सिमटा रहा विपक्ष!
दूसरी ओर सीएम योगी जनता को यह समझाने में सफल रहे कि भाजपा सरकार माफियाओं को समाप्त करने में जुटी है और कानून से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। वहीं विपक्ष भले ही चुनाव की निष्पक्षता और ईवीएम (EVM) पर सवाल उठा रहा हो हकीकत यह है कि भाजपा के आक्रामक प्रचार तंत्र और रणनीति के सामने वह टिक नहीं सका। सपा-बसपा के मुखिया बस सोशल मीडिया के जरिए सियासी बयानबाजी करते रहे। यहीं नहीं सपा के तमाम कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने चुनाव के पहले भाजपा का दामन थाम लिया। विपक्ष के कद्दावर नेताओं के घर से बाहर नहीं निकलने के कारण कार्यकर्ताओं में भी निराशा छायी रही और वे प्रचार से दूर हो गए। इन सबका खामियाजा विपक्ष को हार के रूप में भुगतना पड़ा है।
साफ है यदि विपक्ष प्रदेश में भाजपा से दो-दो हाथ करना चाहता है तो उसे सडक़ पर उतरना होगा। जनहित के मुद्दों पर सरकार से जवाब मांगना होगा अन्यथा उसकी हालत चुनाव-दर-चुनाव पतली होती जाएगी।
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