संपादकीय: इसरो की नयी उपलब्धि के निहितार्थ
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने प्रक्षेपण यान के दोबारा प्रयोग की तकनीक हासिल करने में सफलता प्राप्त कर ली है।
संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने प्रक्षेपण यान के दोबारा प्रयोग की तकनीक हासिल करने में सफलता प्राप्त कर ली है। आरएलवी-एलईएक्स यानी स्वायत्त लैंडिग मिशन की कामयाबी के साथ संगठन ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई है। अब आरएलवी (रियूजेबल लॉन्च व्हीकल) उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के बाद किसी हवाई जहाज की तरह धरती पर वापस आ जाएगा और इसका प्रयोग बार-बार किया जा सकेगा। इस उपलब्धि को हासिल करने वाला भारत दुनिया का छठा देश बन चुका है। इसके पहले यह तकनीक अमेरिका, रूस, चीन, स्पेन और न्यूजीलैंड के पास थी। हालांकि चीन, भारत की तरह ही इसके विकास के चरण में हैं।
सवाल यह है कि…
- इसरो की इस उपलब्धि के मायने क्या हैं?
- क्या अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में यह मील का पत्थर साबित होगा?
- क्या अंतरिक्ष के वैश्विक बाजार और स्पेस टूरिज्म में भारत दमदारी से अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकेगा?
- देश की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पड़ेगा? क्या छोटे देशों के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने में भारत की भूमिका निकट भविष्य में और बढ़ेगी?
देश को दुनिया के अंतरिक्ष बाजार में मिलेगी बड़ी मजबूती
अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में इसरो अपनी उपलब्धियों से इतिहास रच रहा है। फरवरी 2017 में इसरो ने अंतरिक्ष में एक साथ 104 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया था। ऐसा पहली बार हुआ था जब इतने उपग्रह एक साथ अंतरिक्ष में भेजे गए थे। इन उपग्रहों में अमेरिका के अलावा इजरायल, हॉलैंड, यूएई, स्विट्जरलैंड और कजाकिस्तान के भी सैटेलाइट शामिल थे। फरवरी 2023 में इसरो ने एक और बड़ी कामयाबी हासिल की। उसने छोटे सैटेलाइट लॉन्च किए। अब इसके वैज्ञानिकों ने प्रक्षेपण यान का दोबारा प्रयोग करने की तकनीक हासिल कर ली है। इससे देश को दुनिया के अंतरिक्ष बाजार में बड़ी मजबूती मिलेगी।
निकट भविष्य में उपग्रहों को अंतरिक्ष में लॉन्च करना और भी आसान होगा
दुनिया के अन्य देशों की तुलना में उपग्रहों का प्रक्षेपण भारत में काफी सस्ता है। यही वजह है कि अमेरिका जैसे देश भी अपने उपग्रहों को इसरो के जरिए प्रक्षेपित कराते हैं। छोटे देश भी भारत की सेवाएं ले रहे हैं। इससे न केवल इसरो की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है बल्कि इसके जरिए डॉलर में धनराशि आने से भारतीय अर्थव्यवस्था को भी सहायता मिल रही है। इसके अलावा दुनिया के तमाम देशों द्वारा इसरो की सेवाएं लेने की एक बड़ी वजह इसकी सफलता दर का नब्बे फीसदी से अधिक होना भी है। अब जब प्रक्षेपण यान के दोबारा प्रयोग की तकनीक हासिल करने में सफलता मिल गयी है। निकट भविष्य में उपग्रहों को अंतरिक्ष में लॉन्च करना और भी आसान और सस्ता हो जाएगा। इससे आर्थिक रूप से कमजोर देश भी भारत की सेवाएं ले सकेंगे।
स्पेस टूरिज्म को मिलेगा बढ़ावा
वहीं स्पेस टूरिज्म की दौड़ में भारत भी शामिल हो जाएगा। सस्ता होने के कारण स्पेस टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। इसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। इसके अलावा प्रक्षेपण के जरिए आने वाले पैसे से इसरो अपने महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में सफल होगा।