संपादकीय: भीषण गर्मी, विकास और प्रदूषण
यूपी समेत उत्तर भारत के अधिकांश राज्य प्रचंड गर्मी और लू की चपेट में हैं। आम आदमी का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।
संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। यूपी समेत उत्तर भारत के अधिकांश राज्य प्रचंड गर्मी और लू की चपेट में हैं। आम आदमी का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। इसने एक ओर बिजली की मांग कई गुना बढ़ा दी है तो दूसरी ओर अधिक विद्युत उत्पादन का दबाव भी ताप संयंत्रों पर बढ़ गया है। बिजली की अघोषित कटौती ने रही-सही कसर निकाल दी है।
सवाल यह है कि…
- भीषण गर्मी का आने वाले दिनों पर क्या असर पड़ेगा?
- क्या अधिक विद्युत उत्पादन का दबाव प्रदूषण के स्तर को नहीं बढ़ाएगा?
- क्या अघोषित विद्युत कटौती कल-कारखानों की रफ्तार पर ब्रेक लगा देगी?
- क्या कोरोना के कारण बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था पर इसका नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा?
- क्या राज्यों के विकास की रफ्तार धीमी नहीं पड़ जाएगी?
- क्या इससे निपटने के लिए सरकार ने कोई वैकल्पिक व्यवस्था तैयार की है?
70% से अधिक बिजली का उत्पादन कोयला आधारित संयंत्रों पर निर्भर
हर साल गर्मी अपने साथ कई समस्याएं लाती है लेकिन आज तक इनका समाधान नहीं निकाला जा सका है। इसका असर कई तरह से प्रभावित राज्यों पर पड़ता है। सबसे पहले गर्मी के दौरान विद्युत की मांग तेजी से बढ़ती है। शहरों में एसी के चलन ने इस मांग में और इजाफा कर दिया है। मांग की पूर्ति के लिए ताप विद्युत संयंत्रों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इसका सीधा असर देश के वातावरण पर पड़ता है क्योंकि आज भी हम सत्तर फीसदी से अधिक बिजली का उत्पादन कोयला आधारित संयंत्रों से कर रहे हैं।
प्रदूषण बढऩे से तापमान में होती है वृद्धि
कोयले के जलने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है और ये गैसें वातावरण में पहुंचकर प्रदूषण स्तर को बढ़ा देती हैं। दूसरी ओर कोयला आधारित कल-कारखानों के कारण भी इसमें इजाफा होता है। प्रदूषण बढऩे से तापमान में वृद्धि होती है और यह प्रचंड गर्मी में तब्दील हो जाती है। चूंकि मांग के अनुपात में बिजली का उत्पादन नहीं हो पाता है लिहाजा लोग जनरेटर आदि का इस्तेमाल करते हैं। ये भी प्रदूषण का कारण बनते हैं।
विद्युत कटौती अर्थव्यवस्था को करती है प्रभावित
वहीं अघोषित विद्युत कटौती से हालात और भी बिगड़ जाते हैं। इसका सीधा असर बिजली से चलने वाले कल-कारखानों पर भी पड़ता है। कटौती के कारण आम दिनों की अपेक्षा गर्मी में उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। इससे राज्यों की अर्थव्यवस्था सीधे तौर पर प्रभावित होती है।
बाजार में मांग के मुताबिक वस्तुएं नहीं पहुंचने से महंगाई भी बढ़ जाती है। सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से सब्जियों के दामों पर भी इसका असर पड़ता है। कुल मिलाकर भीषण गर्मी न केवल विकास की रफ्तार पर ब्रेक लगाती है बल्कि प्रदूषण स्तर को बढ़ाकर तापमान में वृद्धि कर देती है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह इसका स्थायी समाधान निकाले। इसके लिए सरकार को सौर और अन्य गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ानी चाहिए। साथ ही जनता को इसके प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करना होगा। इससे घरेलू मांग आसानी से पूरी हो जाएगी और विद्युत संयंत्रों पर अतिरिक्त उत्पादन का दबाव भी कम हो जाएगा।
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