संपादकीय: Crime की गंभीरता पर मंथन जरूरी
सर्वोच्च अदालत ने साफ किया कि दोषियों को सजा में रियायत देने से पहले सरकार को अपराध (Crime) की गंभीरता पर विचार करना चाहिए।
संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। सर्वोच्च अदालत ने साफ किया कि दोषियों को सजा में रियायत देने से पहले सरकार को अपराध (Crime) की गंभीरता पर विचार करना चाहिए, अपना दिमाग लगाना चाहिए क्योंकि हत्या की तुलना नरसंहार से नहीं की जा सकती। बिल्कीस बानो मामले में गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों को सजा में दी गई छूट पर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख सवाल किए हैं।
सवाल यह है कि…
- क्या दोषियों को सजा में छूट देने से पहले राज्य सरकारें अपराध की गंभीरता पर विचार करती हैं या वे इसके जरिए अपने सियासी एजेंडे को साधने की कोशिश करती हैं?
- जघन्य अपराधों में शामिल दोषियों को छूट देने का प्रावधान ही क्यों?
- क्या ऐसे अपराधी समाज का कोई भला कर सकते हैं?
- इस बात की क्या गारंटी है कि वे समाज में जाकर दोबारा ऐसा कृत्य नहीं करेंगे?
- क्या पीडि़त के समुचित न्याय पाने के अधिकार को मानवाधिकार के नाम पर बलि चढ़ा देनी चाहिए?
- सुधार की संभावना के बावजूद सरकारों को अपराध की गंभीरता क्यों नहीं दिखती है?
- क्या इस प्रकार की रियायत देने से समाज में सही संदेश जाएगा?
- क्या ऐसे अपराधियों के समाज में दोबारा आ जाने से पीडि़त परिवार के लिए खतरा नहीं बढ़ेगा? क्या रियायत के प्रावधानों पर दोबारा मंथन और जरूरी संसोधन किए जाने की जरूरत नहीं है?
कठघरे में गुजरात सरकार!
बिल्कीस मामले में गैंगरेप व परिवार की हत्या के अपराध में उम्रकैद (life imprisonment for murder) पाने वाले 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई ने गुजरात सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट भी अब राज्य की मंशा और उसके फैसले पर सवाल उठा रहा है। सवाल उठने भी चाहिए लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। कई राज्यों में सत्ताधारी दलों ने दोषियों को अपने हिसाब से सजा में रियायत दी है। यही नहीं आतंकियों के केस तक वापस लेने की कोशिशेें की गईं।
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2012 में तत्कालीन सपा सरकार (SP Government) ने जब वर्ष 2006 में वाराणसी में हुए आतंकी हमले के आरोपियों के केस वापस लेने की कोशिश की तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेहद तीखी टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि क्या राज्य सरकार के इस फैसले से आतंकियों को बढ़ावा नहीं मिलेेगा और ये फैसला अदालत लेगी कि गिरफ्तार व्यक्ति आतंकवादी है या नहीं।
SC को हिदायत की रियायत पर करना चाहिए विचार
दरअसल, कई बार दोषी को सजा में छूट देने के पीछे सत्ताधारी दलों की सरकारों की छुपी मंशा और सियासी एजेंडा भी होता है। इसके जरिए वे अपने कोर वोटरों को संदेश देने की कोशिश करते हैं ताकि इसको चुनाव में भुनाया जा सके। वहीं दूसरी ओर कुछ एनजीओ, मानवाधिकार की आड़ में अपराधियों की तरफदारी करते और राज्य सरकार पर दबाव बनाते हैं। ऐसा कर वे पीड़ित के नैसर्गिक न्याय पाने के सिद्धांत और उसके अधिकारों को दरकिनार कर देते हैं। साफ है सुप्रीम कोर्ट (SC) की यह हिदायत की रियायत देते समय अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए, बेहद अहम है। जाहिर है केंद्र-राज्य सरकारें और खुद सुप्रीम कोर्ट इस मामले में स्पष्ट गाइडलाइन (clear guideline) जारी करें ताकि ऐसे मामलों पर लगाम लग सके।
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