हिरासत में मौत: बड़े पुलिस अफसर हमेशा सेफ जोन में

Sandesh Wahak Digital Desk: पहले अमन गौतम और अब व्यापारी मोहित पांडेय, 16 दिनों में लखनऊ कमिश्नरेट के थानों के अंदर हुई मौतों ने खाकी की किरकिरी कराई है। एक मृतक दलित तो दूसरे का ब्राह्मण समुदाय से वास्ता था। इसलिए उपचुनाव से पहले सियासी बवाल तय था।

सरकार ने दोनों मामलों में थाना स्तर पर कार्रवाई और आर्थिक मदद से जनाक्रोश को ठंडा करने का प्रयास किया है। इस बार भी हिरासत में हुई मौतों पर बड़े पुलिस अफसर सेफजोन में बने हैं। पुलिस हिरासत के दौरान हुई मौतों के मामले में यूपी का अव्वल रहना नई बात नहीं है। हर वर्ष मामलों में इजाफा होने पर भी बड़े अफसरों तक आंच नहीं आती।

इन्ही अफसरों के जिम्मे थानों की निगरानी की व्यवस्था है। लखनऊ कमिश्नरेट में 17 आईपीएस और 33 पीपीएस तैनात हैं। जोनवार व्यवस्था में बड़े पुलिस अफसरों की जिम्मेदारी ज्यादा है। थानों में व्यक्ति के हिरासत में आते ही उच्च अफसरों को सूचना जरुरी है। ऐसे में निगरानी के प्रति लापरवाह आईपीएस व पीपीएस अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते। बावजूद इसके, हिरासत में मौत होने पर कार्रवाई का दायरा सिर्फ थानेदार तक ही सीमित रहता है।

हिरासत में मौतों के आंकड़ें

  • 2018 से 2019 : 12
  • 2019 से 2020 : 3
  • 2020 से 2021 : 8
  • 2021 से 2022 : 8
  • 2022 से 2023 : 10
  • 2024 : अभी तक चार से ज्यादा लोगों की जान पुलिस हिरासत में जा चुकी है।

बड़े अफसरों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए : पूर्व डीजीपी

हिरासत में हो रही मौतों पर पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं कि सीनियर अफसर फेल हो रहे हैं। गैरकानूनी गिरफ्तारियां की जाती हैं। चिनहट के मामले में हुई गिरफ्तारी पूरी तरह नाजायज है। बड़े अफसरों को थानों का मुआयना करना चाहिए। उनकी भी पूरी जिम्मेदारी है। हम लोग भी अपने कार्यकाल में निरीक्षण करते थे। हिरासत में मौत के मामलों में बड़े अफसरों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट पैदा करती है भ्रामक स्थिति : दारापुरी

पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी के मुताबिक पुलिस हिरासत में हुई मौतों के मामलों में पीएम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण ज्ञात न होना और विसरा सुरक्षित रखा जाना अंकित होता है। पीडि़त परिवार की एफआईआर में मृतक संग पुलिस द्वारा मारपीट का स्पष्ट आरोप लगता है। फलस्वरूप मौत की बात कही जाती है। मृत्यु का कारण स्पष्ट तौर पर ज्ञात होना चाहिए। पीएम रिपोर्ट से भ्रामक स्थिति पैदा होती है। लाभ आरोपी पुलिस कर्मियों को मिलता है। निगरानी करने वाले बड़े पुलिस अफसरों पर कार्रवाई जरूरी है।

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