JPNIC Scam: 864 करोड़ के जेपीएनआईसी घोटाले में बड़े अफसरों को बचाने की साजिश
Sandesh Wahak Digital Desk: हर साल गोमतीनगर में एलडीए के ठीक बराबर में स्थित 18 मंजिला जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर ( जेपीएनआईसी) को लेकर सियासी बवाल होता है।
सपा मुखिया अखिलेश यादव जननायक जेपी को श्रद्धांजलि देने से रोकने का आरोप लगाते हैं। वहीं योगी सरकार 864 करोड़ के जेपीएनआईसी के निर्माण में बड़े घोटाले का आरोप सपा शासन पर लगाने से तनिक भी परहेज नहीं करती है। लेकिन इतने बड़े घोटाले के दोषी अफसरों पर कार्रवाई के नाम से मानो मौजूदा सरकार के जिम्मेदारों को भी सांप सूघ जाता है। इमारत का बजट अब हजार करोड़ के भी पार पहुंच चुका है।
असल में इस घोटाले की जद में आवास विभाग के तत्कालीन बड़े अफसरों के साथ मुख्य सचिव तक आ सकते हैं। साथ ही सपा शासन के दौरान सीएम सचिवालय के दिग्गज अफसर भी अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते। जिसका खुलासा खुद घोटाले में दोषी तत्कालीन एलडीए वीसी सत्येंद्र सिंह ने तीन साल पहले ही कर दिया था। नतीजतन नौकरशाही उन अफसरों को बचाने के लिए घोटाले की जांच रिपोर्ट को फाइलों में कैद करके रखे है। -शेष खबर पेज 2 पर
सांसद बनकर भाजपा की गोद में बैठे हैं संजय सेठ
अरबों के जेपी सेंटर के निर्माण की जिम्मेदारी सपा सरकार के दौरान शालीमार समूह के मुखिया संजय सेठ को मिली थी। संजय सेठ ने मौके की नजाकत को भांपते हुए सपा छोड़ दी और भाजपा से राज्यसभा सांसद बन चुके हैं।
तत्कालीन मुख्य सचिव और सीएम तक को पूर्व वीसी ने लपेटा
आरोप पत्र के जवाब में तत्कालीन वीसी एलडीए सत्येंद्र सिंह ने लिखा था कि स्वीकृत डीपीआर के अतिरिक्त कराए काम के लिए एलडीए के तत्कालीन सचिव सहित तीन अफसरों को जानकारी थी। तत्कालीन सचिव आवास और मुख्य सचिव की कमेटी लगातार समीक्षा करती थी। सीएम के सलाहकार भी शामिल रहते थे। खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री इसका निरीक्षण करते थे।
क्या कहती है भाजपा ?
भाजपा प्रवक्ता आलोक अवस्थी ने कहा कि जेपीएनआईसी भ्रष्टाचार का उदाहरण है। तीन बार बजट रिवाइज करके घोटाला किया गया। लेकिन घोटाले की लंबित जांच रिपोर्ट पर अफसर से लेकर नेता तक चुप हैं।
डीपीआर गायब, जांच पर लाखों खर्च, नतीजा ज़ीरो
अरबों के संगठित भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए जेपीएनआईसी के निर्माण की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) एलडीए से गायब करा दी गयी। जून में अपर मुख्य आवास नितिन रमेश गोकर्ण ने एलडीए वीसी रहे इंद्रमणि त्रिपाठी को एफआईआर के निर्देश दिए थे। थर्ड पार्टी जांच करने वाली संस्था राइट्स को भी लाखों का भुगतान किया गया। घोटाले की जांच रिपोर्ट और कार्रवाई का कोई अता पता नहीं है। वहीं सियासी बवाल को देखते हुए अफसरों ने चुप्पी साधना ही बेहतर समझा है।
जेपी की जयंती पर इस बार भी नहीं पूरे हुए अखिलेश के मंसूबे
जेपीएनआईसी में जय प्रकाश नारायण जयंती मनाने का सपा मुखिया अखिलेश यादव का मंसूबा इस बार भी कामयाब नहीं हो पाया। योगी सरकार की घेरेबंदी की वजह से पिछली बार की तरह वह गेट फांदकर भी जेपीएनआईसी कैंपस में नहीं पहुंच पाए। इस बार गेट पर टिनशेड और सेंटर के बाहर बैरिकेडिंग लगाकर भारी संख्या में पुलिस भी तैनात कर दी गई। समाजवादियों ने सडक़ पर जमकर प्रदर्शन किया। बाद में अखिलेश ने विक्रमादित्य मार्ग पर सडक़ पर ही एक वाहन के ऊपर रखी जय प्रकाश नारायण की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इस मुद्दे पर खूब सियासी घमासान मचा है।
योगी सरकार के सत्ता में कदम रखने के बाद तकरीबन आधा दर्जन कमेटियों के जरिये पिछले सात वर्षों में जेपीएनआईसी घोटाले की जांच कराई गयी। जो आज भी मुकाम तक नहीं पहुंच सकी। जबकि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की नीति जीरो टॉलरेंस की है। दरअसल सपा शासन के दौरान अंजाम दिए गए जेपीएनआईसी घोटाले का पर्दाफाश सबसे पहले अप्रैल 2017 में तत्कालीन मंत्री आशुतोष टंडन और सुरेश पासी के निरीक्षण में हो गया था। दोनों मंत्रियों के साफ़ कहा था कि ढाई सौ करोड़ की बर्बादी की गयी है। बाद में इसी वर्ष अचानक से अफसरों ने जेपीएनआईसी के निर्माण में किसी भी प्रकार का घोटाला न पाते हुए बिजली के कार्यों में सिर्फ 19 फीसदी की कीमतों का अंतर पाया।
एलडीए ने राइट्स संस्था से भी थर्ड पार्टी जांच कराई
पीडब्ल्यूडी अफसरों की जांच में नौ करोड़ के कार्यों का अनुमोदन न लिए जाने का जिक्र किया गया। तत्कालीन मुख्य सचिव आरके तिवारी घोटाले की जांच रिपोर्ट पर खूब भडक़े थे। हालांकि बाद में एलडीए ने राइट्स संस्था से भी थर्ड पार्टी जांच कराई। मंडलायुक्त से लेकर शासन तक के अफसर इस घोटाले की जांच कर चुके हैं। जेपी सेंटर के निर्माण के लिए पहले 265 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए थे। फिर बढ़ाकर 665 करोड़ और तीसरी बार इसे 864 करोड़ रुपए कर दिया गया। शासन ने इसमें पूर्व में 40 करोड़ के घोटाले की बात कही थी।
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